बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

भारतीय संस्कृति बनाम वेलेन्टाइन डे-एक विचार



भारतीय संस्कृति बनाम वेलेन्टाइन डे-एक विचार

                मै कोई प्यार पर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं रखने वाला हुँ, न ही प्यार पर कोई व्याखान देने वाला हुँ। ऐसा कहना आज के दौर में और आज 14 फरवरी 2018 को अधिक प्रासंगिक हो गया है जब वेलेंटाइन डे और महाशिवरात्रि एक ही दिन है। कुछ लोग, आज की मीडिया, और सोशल साइट अफवाह फैला रहें है कि 14 फरवरी को देशभक्त, आजादी के मतवाले और देश का सपूत भगत सिंह और उनके साथीयों को फांसी दी गयी थी। जबकि हकीकत यह है कि 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। इस ऐतिहासिक घटना की स्मृति आज भी हम भारतीयों के जेहन में संरक्षित है और आगामी सदियों तक सुरक्षित अपने पीढियों को विरासत के रूप में सौंपना हमारा कर्तव्य है। 

           प्यार एक खुबसूरत ऐहसास है। आज के युवा नहीं जानते ‘‘क्या यही प्यार है ?’’ और ‘‘हाँ यही प्यार है’’ इसमें क्या अंतर है। प्यार की सुन्दरता, सरलता एवं शुद्धता से अनजान युवक कुत्सित रूप से समाज में इसका प्रदर्शन लाल गुलाब के आदान-प्रदान करते हुए नजर आते हंै। जब कोई व्यक्ति  इस क्रिया में अन्र्तविष्ट होता है तो उसे सबकुछ सुंदर, सलोना एवं सुहावना लगने लगता है, हर समय खुशगवार महसूस करता है। यह एक ऐसा समय होता है जो अमीरी-गरीबी, जात-पात, मान-सम्मान, धर्म, पंथ, सामाज का ऐहसास को तुच्छ एवं क्षीण कर देता  है। सदियों से इस नाम पर लोगों में खून-खराबा होते आ रहें है कभी धर्म के नाम पर कभी जाति के नाम पर तो कभी अमीरी-गरीबी के नाम पर। 

               14 फरवरी कोे पश्चिमी देशों में मनाया जाने वाला पर्व इस दिन अपने शबाब पर ही होती है उनका रौनक ही अलग होता है। क्या पश्चिमी देश हमारे योद्धाओं, स्वतंत्रता सेनानियो, ऋषि मुनियों, महापुरूषों  की शहादत या पूण्य तिथि का पर्व मनाते है ? अगर नही ंतो हम क्यों पाश्चात्य देशों की सभ्यता, संस्कृति के पीछे भागते हैं ? इस प्रसंग में गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ जी की कविता का अंश याद आता है -

जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं 
वह हृदय नही है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं 

           संस्कृति क्या है ? यह कोई जीता-जागता स्वरूप नहीं है अपितु अमूर्त भावना है, एक ऐहसास है जो किसी विशेष क्षेत्र के निवासियों केे वजूद को अपने भावनात्मक डोर में मानवता से बांधने की क्षमता रखती है। हर संस्कृति की की कुछ विशिष्ठ लक्षण एवं विशेषताएँ होती है, जो प्राकृतिक आवो-हवा और वहाँ की परंपरा पर निर्भर करती है। 

                भlरतीय संस्कृति में जीवन के चार मूल्य है - धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष और  पाश्चात्य संस्कृति में अर्थ और काम की ही महŸाा है। संस्कृति का उद्देश्य मानव जीवन को सुंदर एवं परिष्कृत करना है। एक ओर पश्चिमी सभ्यता के लोग हमारे योग, आयुर्वेद, धर्म और संस्कृति को अपनाने के लिए आतुर हैं तो दूसरी ओर हमारे युवक पाश्चात्य संगीत, वेश-भूषा, स्वछंदता, का अंधानुकरन करके हमारे सामाज में एवं वातावरण में गंदगी फैला रहें हैं। यदि कम कपड़े पहनना माॅडर्न होना है तो हमारे आदिवासी बंधु सदियों से माॅडर्न हैं। लज्जा स्त्रियों का आभूषण होता है, हम अपनी संस्कृति, सभ्यता भूलते जा रहे हैं और पश्चिमी सभ्यता के लोलुपता के पीछे भाग रहे हैं। 

              हमारा दुर्भाग्य है कि दिन-प्रतिदिन हमारे संास्कृतिक मूल्य एवं आदर्श पश्चिमी सभ्यता में विलीन होते जा रहे हैं। आज हमारी संस्कृति पास्चात्य संस्कृति के मोहपाश में जकड़ गया है और हम अपने सांस्कृतिक धरोहर को भूल चुके है। हम इस बदलाव की आंधी में इतने दूर चले गये हैं कि वापस आने का रास्ता दूभर हो गया है।  कहीं ऐसा न हो कि अपने आने वाले पीढियो को सांस्कृतिक विरासत देने के लिए हमारे पास कुछ शेष ही न रह जाय। यह निश्चित है कि अगर आज हम न संभले तो कल पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। 




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रविवार, 11 फ़रवरी 2018

Jammu and Kashmir: A timeline of terror attacks in 2018

सुंजुवां शैन्य शिविर पर आतंकी हमला एक कायरता
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       कायरता की पराकाष्ठा पार कर चुका पाकिस्तान बार.बार हमारे सैन्य शिविरों पर जो छद्म हमला कर रहा है ये किसी देश की विजय गाथा तो नही कहा जा सकता ये उसकी छुद्रता का परिचायक है। पिछले काफी वक्त से पाकिस्तान आतंकियों की घुसपैठ कराने के लि बार.बार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है। उड़ी के बाद शैन्य शिविरांे पर दूसरा सबसे बड़ा आतंकी हमला है। भोली.भाली जनता को भारतवर्ष के खिलाफ भड़का कर जो घटिया कर्म पाकिस्तानी शासक कर रहे हैं उसका परिणाम एक विध्वंस की तरफ इशारा करता है। इस आतंक के कारखाने से कमोवेश विश्व के सभी देश प्रभावित हैं। 90 के दशक मे एक फिल्म आयी थी जिसमें अमिताभ जी ने कहा था ष्ष्किड़ा दो तरह के होते हैं एक कचरे से पनपता है दूसरा पाप की गंदगी से उठता है कचरे वाला किड़ा इन्सान को बीमार कर देता है मगर पाप की गंदगी का किड़ा पूरे सामाज को बीमार कर देता हैष्ष्। ये पाकिस्तान भी पाप की गंदगी वाला कीट है जो वैश्विक सामाज को बीमार बना दिया है। 9 फरवरी को अफजल गुरू की फांसी का वर्षगांठ मनाना और उसके विरोध में आतंकी हमला करना एक बीमार मानसिता का परिचायक है। ये सरासर कायरता को दर्शाता हैए पाकिस्तान कभी भी सीधे तौर पर भारत का सामना नहीं कर सकता हैंए इसलिए छुप.छुप कर हमला करता है। विडम्बना है कि हर बार हमारे सैनिक उन्हें चारो खाने चित कर देते हैं।

        हमारे सौनिकों ने यह साबित कर दिया है कि वे अपने फर्ज से कभी पीछे नही हटेंगे देश का सर झुकने नहीं देंगें। हम सभी भारतवासी का भी फर्ज बनता है कि जब भी अपने फौजी भाइयों से मिलें तो उन्हें सलामी दें  सैनिको का मनोबल बनाये रखने के लिए यह सम्मान उन्हें मिलना ही चाहिए तभी देश की मान.मर्यादा पर मर मिटने वाले शहिदांे की सच्ची श्रद्धांजली होगी। जो सैनिक दिन.रातए सर्दी.गर्मीए धूप.पानी और भूख.प्यास को भूल कर हमारी रक्षा के लिए सरहद पर डटे रहते हैं उनके लिए एक आम नागरिक क्या कर सकता है घ् कम से कम उन्हें सम्मान तो दे ही सकता है। एक आम नागरिक को भी अपने व्यस्त दिनचार्या से कुछ समय निकाल कर इस विषय पर चिन्तन करने की आवश्यकता है।

          शनिवार प्रातः 4.5 के बीच जम्मू.कश्मीर के सुंजवां सौन्य शिविर को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने निशाना बनाया है। अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए हमला आवासीय कालोनी पर किया। हमेशा की तरह किसी भी तरह शांति के माहौल को बिगाड़ने में लगे रहतें हैं। जम्मु.काश्मीर में लगातार अशांति का माहौल बनाना चाहते हैं। जैश.ए.मोहम्मद के  इस हमले में हमारे देश के कई सपूत शहिद हो गयेए कुछ घायल हो गये लेकिन देश की आन बान और शान पर नापाक नजर रखने वाले दुःश्मनो के इरादों को सफल नही होने दिया। सेना और जवानों ने बखुबी से अपने काम को अंजाम दिया और दुश्मनों को मुँहताड़ जवाब दिया है। सेना के जवानों की जितनी तारीफ की जाय कम है। जानकारी के लिए यह बता देना आवश्यक है कि भारतीय सेना द्धारा ष्ष्आॅल आउट मिशन चलाया जा रहा है जिसमें जम्मु.कश्मीर से समस्त आतंकवादियों का सफाया किया जायगा।

         मेरी संवेदनाएं उन सभी घायलों और शहिद परिवारों के साथ है जिनके सपूत इस पूण्य कार्य में देश की रक्षा करते हुए अपनी जान का बलिदान दिया। 
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शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

Nitya Karma Puja Padhati

दैनिक पूजा कर्म पद्धति
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                 कलियुग में व्यक्ति के बहुआयामी व्यक्तित्व होने के कारण व्यक्ति का जीवन अत्यंत व्यस्त हो गया हैै, जिससे जीवन कष्टमय होता जा रहा है। जीवन को सुखमय बनाने के लिए हमारी संस्कृति, हमारे जीवन और कर्म के लिए कुछ धार्मिक सिद्धांत स्थापित किया गया है। हमारे जीवन में कुछ पल ऐसे आतें है जब हमारा मन शुद्ध और सात्विक रहता है उस समय में किये गये कर्म का फल निष्फल नहीं जाता है और कर्म का प्रभाव पूण्यवर्धक होते हैं। जिस प्रकार दवा नियमित और समय पर लेने से व्यक्ति निरोग हो जाता है और मनमाने ढंग से सेवन करने पर तो उपयुक्त लाभ नहीं मिल पाता है। उसी प्रकार मंत्रो का पाठ भी समय के अनुसार संरचना की गयी है। वर्तमान परिपेक्ष में यह कहना उचित होगा कि हम प्रतिदिन 24 घंटे में विभिन्न तरह के काम-क्रोध, लोभ-मोह, राग-द्वेष इत्यादि दूर्गुणों के वषीभूत रहते हैं। यदि 24 घंटे में एक घंटे का समय धर्म-कर्म के लिए किया जाय निश्चित रूप से इस शुभ कर्म का पुण्य अवश्य प्राप्त होगा। सबसे पहले हमें अपने शरीर, आत्मा, मन और इद्रियों की शुद्धि की आवश्यकता होगाी। 

जब सुर्य की अरूणिमा अपने लालित्य के साथ गगन और पृथ्वी के बीच में उदय होते हैं वस्तुतः हमारा कर्म उसी समय सुरू होता है। वस्तुतः वैदिक, सनातन धर्मशास्त्र ही मानव के लिए श्रेष्ठ है अतः इसी के अनुसार मानव को अपने कर्म करने चाहिए। गीता में कहा गया है ‘‘स्वकर्मणा तमभ्यच्र्य सिद्धिं विन्दति मानवः’’ हमारे सनातन धर्म में प्रातः काल से लेकर शयन के समय तक के विभिन्न मंत्र की रचना की गयी है। ये सारे कर्म धर्म शास्त्र के अनुसार होना चाहिए। ‘‘जायमानो वै ब्राह्मणस्त्रिभिर्ऋणवा जायते’’ कोई शिशु जब जन्म लेता है तो उस पर तीन तरह के ऋण होते हैं - देव-ऋण, पितृ-ऋण और गुरू-ऋण, जो व्यक्ति धर्मशास्त्रसम्मत, नित्यकर्म और श्रद्धा के साथ जीवन भर कर्म करते हुए जीवन व्यतीत करते है उन्हें इन तीनों ऋणों से मुक्ति मिलती है। 


‘‘अथोच्यते गृहस्थस्य नित्यकर्म यथाविधि।
यत्कृत्वानृण्यमाप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मनुषात्।।’’

जब हम प्रातः काल नींद से जगते हैं तो जगने के बाद विस्तर पर ही हमें हमें अपने दोनो हाथ आँखों के सामने रख कर इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
‘‘कराग्रे वस्ते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती।
क्र मूले तु गोविंदम, प्रभाते कर दर्षनम।।’’

कर दर्षन के पश्चात् हमें तीनो देवों के साथ नवग्रह से निवेदन करना चाहिए कि यह दिन मेरे लिए शुभ हो -

‘‘ब्रह्म मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरूश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।’’

जब विस्तर से नीचे उतरते है तो सबसे पहले अपना दाहिना पैर भूमि पर रखना चाहिए फिर बायाँ पैर लेकिन पैर भूमि पर रखने से पहले पृथ्वी माता का अभिनन्दन करना चाहिए।

‘‘समुद्रवसने देवी   पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व में।।

इस मंत्र के मंत्रोचार के बाद अपने गुरू तथा सूर्य को नमस्कार करें। अपने हाथ, पैर और चेहरे को धो कर कुल्ला करें तथा थोड़ा सा जल अपने उपर छिड़ककर निम्न मंत्र का उच्चारण करें।

‘‘ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽ पि वा।
यः स्ममरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
अतनीलघनष्यामं   नलिनायतलोचनम्।
स्मरामि  पुण्डरीकाक्षं  तेन  स्नातो भवाम्यहम्।।’’

स्नान करते समय जल में अपनी उंगली से त्रिकोण बनायें तत्पशत नहाने से पहले इस मंत्र का पठन करें -

‘‘गंगे यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम कुरू।।’’

स्नान करने के बाद सबसे पहले सुर्य देव को जल चढाना चाहिए। सूर्यदेव की आराधना करने से पहले 11 बार माता गायत्री मंत्र से करना चाहिए उसके बाद सुर्य भगवान का मंत्र पढना चाहिए।

‘‘ऊँ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्’’

‘‘ऊँ भास्कराय विùहे, महातेजाय धीमहि 
तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्’’

‘‘ऊँ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युश्च
आदित्याय नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।

‘‘दीर्घमार्युबलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् 
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।’’

‘‘ऊँ मित्राय नमः’’

‘‘ऊँ रवये नमः’’

‘‘ऊँ सूर्याय नमः’’

‘‘ऊँ भानवे नमः’’

‘‘ऊँ खगाय नमः’’

‘‘ऊँ पूष्णे नमः’’

‘‘ऊँ हिरणगर्भाय नमः’’

‘‘ऊँ मरीचये नमः’’

‘‘ऊँ आदित्याय नमः’’

‘‘ऊँ सवित्रे नमः’’

‘‘ऊँ अर्काय नमः’’

‘‘ऊँ भास्कराय नमः’’

‘‘ऊँ रवये नमः

‘‘ऊँ श्री सवितृ सर्यनारायणाय नमः’’

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्करः

दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोस्तु ते।।’’

व्यक्ति के रीर का पोषण भोजन से प्राप्त होता है तथा रीर के सभी अंग भोजन से उर्जा प्रप्त कर अपना कार्य सम्पादित करते हैं। यदि भोजन के समय इन मंत्रों का उच्चारण करते है तथा अपने हाथ के पाँचो उंगलियों से भोजन करते है तो पंच तत्व गुण हमारे भोजन को और गुणकारी बनाते है और हमारा शरीर अधिक उर्जावान होता है। 

‘‘ऊँ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वार्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।।’’
‘‘ऊँ शान्तिः शान्तिः शन्तिः।।

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे। 
ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिखां देहि च पार्वति।।

ब्रह्मार्पणं ब्रह्माहविर्ब्रह्माग्न्नौ ब्रह्मणा हुतम।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।।

भोजन के बाद इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए -

‘‘अगस्तम कुम्भकर्णम च शनिं च बडवानलनम।
भोजनं परिपाकारथ स्मरेत भीमं च पंचमं।।’’

‘‘अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।

विद्यार्थियों को अध्ययन के समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इससे माता सरस्वती आवाहन होता है तथा उनका आर्शिवाद भी प्राप्त होता है -

‘‘ऊँ श्री सरस्वती शुक्लावर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचन्द्रप्रभामुष्टपष्श्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।

संध्या काल में व्यक्ति को संध्या वंदन करना चाहिए ऐसा वेदों में कहा गया है। 

‘ऊँ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।’’

स्ंाध्याकाल में घर में, पूजा के स्थान पर तथा तुलसी वृक्ष के नीचे दीप प्रज्वलित करना चाहिए तथा इस मंत्र को पढना चाहिए इससे जीवन में कल्याण होता है, धन में बृद्धि होती है और शत्रु का विनाश होता है,  -

‘‘शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोस्तु ते।।’’

‘‘सायं ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु में पापं संध्यादीप नमोस्तु ते।।’’

‘‘शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदाम्।
मम बुद्धिप्रकाषं च दीपज्योतिर्यस्तु ते।।’’

सोने के समय इस मंत्र का पाठ करें इससे सभी तरह के भय का विना होता है तथा यह आपके लिए बहुत लाभदायक होगा। 

‘‘अच्युतं केशवं विश्णंु हरिं सोमं जनार्दनम्।
हसं नारायणं कृष्णं जपते दुःस्वप्रशान्तये।।’’

आशा करता हुँ कि इन मंत्रों का प्रयोग करने से आप के जीवन में खुशहाली, समृद्धि तथा हरेक प्रकार के दोषों का निवारण हो सकेगा और आप स्वस्थ्य जीवन-यापन करने मे सक्षम हो सकंेगे। ईश्वर की अनुकम्पा सदा आप पर बनी रहे यही कामना करता हुँ। सर्वथा मेरा यह प्रयास रहेगा कि विभिन्न तरह के पठन मंत्र सामग्री  का संकलन कर आपके समक्ष प्रस्तुत करता रहुँगा। यह ज्ञान पथिक ब्लाॅग का संकल्प है कि भारतवर्श के जनमानस तक यह पहुँचाने का प्रयास सदैव करता रहुँगा। इसमें आपका सहयोग अपेक्षित है।
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सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

आज की फिल्में एवं दूरदर्शन विद्यार्थियों में अपराध भावना को बढावा दे रही है।

आज की फिल्में एवं दूरदर्शन विद्यार्थियों में अपराध भावना को बढावा दे रही है।
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             अपने जनक विज्ञान तथा अपनी जननी कला के संरक्षण में लालित-पालित तथा संरक्षित यह लाड़ला ‘‘चलचित्र’’ एवं ‘‘दूरदर्शन’’ आज ‘‘पंचम वेद’’ की आत्मा का सौंदर्य बनकर हमारे दिल और दिमाग दोनों पर छा गया है। इसे हम कला की भावगत सुन्दरता तथा विज्ञान की बुद्विगत वरेण्यता की क्रीड़ा का आँगन कह सकते है। एक ओर यह हमारी सास्वत भाव-सम्पदा का चलित और सुरक्षित कोष है तो दूसरी ओर यह हमारी बुद्विगत उपलब्धियों का सजा सजाया बाजार भी। फिल्मों एवं दूरदर्शन के प्रांगण में भावों की रससिद्धि कली अपनी नवमुस्कान छटा विखेरती है तो बुद्धि की चकाचैंध-मयी उपलब्धियाँ भी विराजती है।

               समस्यासंकुल युग में फिल्मों की लोकप्रियता जग जाहिर है। शहर का कोना-कोना तथा गाँव की गली-गली इसके महिमा-गीत के अह्लादक स्वरों में अनुगुंजित हो रही है। इस र्वज्ञानिक युग में शायद ही कोई हतभागा इन्सान होगा जिसने इस कालजयी माहातत्व के दर्शन न किये हों। आज शायद ही ऐसी कोई जगह होगी जहाँ सिनेमा के गीतों रसमय फुहार ने लोगोें के कर्ण-कुहर में अमृत का वर्षण न किया हो।

         नायक-नायिका चुम्बन का ललित व्यापार, पिकी की तरह अभिनेत्रियों की मृदु-मस्त पागल पुकार, प्रकृतिरानी के तरह सजे-सजाये रूप का श्रृंगार भला किसके मन और प्राण में उल्लास तथा मस्ती नहीं विखेर देंगे। भला इस मादक वातावरण में किसकी कमनीय लालसा इसके नण्य और भव्य परिवेश में लिपट कर उन्मत्त नही हो उठेगी ? दिवा-स्वपनों के रंग महल खड़ा करने वाले, अपूरनीय योजनाओं के शीशमहल उठाने वाले एवं कलित-ललित कल्पनाओं के हवाई महल बनानेवाले विद्यार्थी वर्ग अगर इसके शिकार हो ही गये तो इसमें आश्चर्य ही क्या ?

               आज जितनी भी फिल्में या धारावाहिक बनती है उनमें अधिकांश फिल्में और धारावाहिक का निर्माण मनोरंजन करने के उद्देश्या से ही किया जाता है। धूर्त फिल्म निर्माता और निर्देशक मनोरंजन प्रदान करने के संदर्भ में बिल्कुल सस्ती, घटिया तथा बाजारू मनोवृति का विवरण देते हैं। मनोरंजन का साधन जुटाने के लिए वे गन्दे-गन्दे अश्लील दृश्यों का अंकन, तथाकथित प्रेम-रस-सिक्त गीतों का चयन और नायिकाओं के कायिक नग्न सौंदर्य का प्रस्तुतीकरण कर फूले नहीं समाते। नतीजा यह होता है कि इन फिल्मों तथा धारावाहिकों के दर्शक स्थूल रूप में मनोरंजन का साधन पाकर भले ही हर्षातिरेक में झूमते हों, लेकिन भीतर अनैतिकता का विष किट इस तरह चलता रहता है कि उनका चरित्र, उसकी मनोवृति, उनके सारे कार्य-कलाप सब कुछ अस्वाभाविक हो जाते हंै।

                आज की ये फिल्में और धारावाहिकें विद्यार्थियों में अपराध भावना को बढावा दे रही है। विद्यार्थी-समाज इन फिल्मों के चलते बहुविध अनैतिक बिमारियों के भीषण शिकार हो गये हैं। इन फिल्मों के संपर्क में आने के कारण वे ऐसे भ्रष्ट और अनैतिक हो गये हैं कि उसका कोई ठिकाना नहीं। आज काॅलेजों में छात्रावासों में सड़कों पर विद्यार्थियों द्वारा उनके आचार-विचार का जो भी कलुषित और कलंकित रूप हमें देखने को मिलता है, उसका सारा श्रेय हमारी फिल्मांे तथा धारावाहिकों का है। उनकी फैशनपरस्ती, कामुकता, अनुशासनहीनता तथा झूठे प्रदर्शन की प्रवृति को जन्म देने का एकमात्र श्रेय इन फिल्मों तथा धरावाहिकों का है। आज की फिल्में तथा धारावाहिक वासना को उदृदीप्त करनेवाली तथा अपराध वृति को प्रोत्साहित करनेवाली है जिससे विद्यार्थियों का चारित्रिकवल क्षीण होता जा रहा है और सामाज में नैतिकता का पक्ष दुर्वल पड़ गया है।
                  ‘‘काँटा लगा हाय रब्बा ...........................’’ का सड़ाध युक्त ध्वनि और दृश्य अब विद्यालयों, महाविद्यालयों की कक्षाओं में खुले आम हो रहा है। वर्णमाला की जानकारी के पुर्व ही ‘‘ कमरिया करे लपालप .........लाॅलीपाॅप लागेलू......... ’’ का राग आज का बच्चा सस्वर स्मरण कर गया है। राम, कृष्ण, सुभाष, गाँधी और लक्ष्मीबाई का नाम वह भले ही न जान पाये पर ऋितिक, सलमान, साहरूख, आमीर, अक्षय, शीबा, सन्नी लियोन आदि को वह भली भाँति पहचानता है। आज का छात्र एक ओर शक्ति कपूर, मनीष बहल से सफल खलनायक बनने का तरीका सीख रहा है तो दूसरी तरफ छात्राएँ प्रियंका चोपड़ा, कैटरीना और निगार खान से प्रभावित होकर ग्लैमर और पाकिटमारी की।

                  अतः यह निर्विवाद रूप से शत प्रतिशत सत्यता के साथ, डंके की चोट पर कहा जायेगा कि आज की फिल्में एवं धारावाहिकें ही विद्यार्थियों में अपराध भावना को बढाावा दे रही है।



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Society is responsible for Indiscipline among students


विद्यार्थियों में बढती अनुशासनहीनता के लिए समाज उततरदायी है।
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चिर प्रतीक्षित स्वतंत्रता की कनक किरणांे के अभिनन्दन के बाद हमने उन आलोक-रश्मियों में अपनी रूग्णता के जिन असंख्य कीट-कृमियों को देखा है उनमें ‘‘विद्यार्थियों में बढती अनुसाशनहीनता’’ का विष-कीट बड़ा ही घातक है। आज हमारा राजनीतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन इस विषधर भुजंग के काले साये में पड़कर हर तरह से मलिन, कलंकित और अभिशप्त हो गया है। आज ऐसा लग रहा है कि सम्पूर्ण विद्यार्थी वर्ग विप्लव की ज्वालामुखी के मुख पर बैठा बस एक विस्फोटक की राह देख रहा हो।

सम्पूर्ण वातावरण इनके कोलाहल, नारेबाजी, मशाल-जुलूस, तोड़-फोड़, हड़ताल, घेराव, परीक्षाओं के बहिष्कार इत्यादि कार्याे से अशान्त और आन्दोलित है। रेल में, बस में, प्रशस्त राजपथ या संकीर्ण गलियों में, बडे़-बडे़ नगरों के सजे-सजाये बाजारों में या गाँव की सूनी पगडंडियों पर सभी जगह विद्यार्थी वर्ग के आक्रोश के लक्षण न्यूनाधिक रूप में विराजमान है। नेता और अविभावक, शिक्षक और परीक्षक, माता और पिता सभी छात्रोें के इस आंदोलन और अनुशासनहीनता से चिंताकुल है, सभी के सामने शांति, प्रेम, सदभावना और सहयोग के एतिहासिक अस्तित्व की स्थापना का एक लम्बा चौड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह लटक रहा है। अब तो ऐसा लगने लगा है कि शासन-यंत्र के नियंत्रण से परे होकर विद्याथियों में बढती अनुशासनहीनता दिन-प्रतिदिन उग्र से उग्रतर होता चला जा रहा है और एक दिन ऐसी विस्फोटक स्थिति हो जायेगी कि हमारी उपलब्धियों की सारी मर्यादा क्षत-विक्षत हो जायेगी, हमारे आदर्श के खड़े मानदण्ड टूट-टूट कर विखर जायेंगे।

आचार्य रजनीश ने अपने भास्वर स्वर में विद्यार्थियों में बढती अनुशासनहीनता के लिए समाज को उŸारदायी बताया है- ‘‘ यह पीढी प्रेम की भूखी है। इन्होने अपने चारों ओर झूठ-फरेब का जाल देखा है और ये क्रमशः उपद्रव अपनाते जाते हैं। जिस पीढी को स्नेह-सद्भाव मिला ही नही उससे स्नेह-सद्भाव की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। ये छूरेबाजी करते हैं, लड़कियों पे एसिड फेंकते हैं, कॉलेज में आग लगाते हैं ............तुम्हारा कोई शिक्षक, तुम्हारे कोई घर्म गुरू उन्हें नहीं समझा सकेंगे।’’

एक ओर यदि सामाज का उपांग परिवार, अपने परिवारिक नियंत्रण के अभाव में विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता का बीज वपण कर रहा है तो दूसरी ओर दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति तथा भ्रष्ट राजनीति की विषाक्त हवा इसे पल्लवित और पुष्पित कर रहा है।

बढते परिवार, बढती मँहगी, बढती बहुविध समस्याओं एवं उलझनों के कारण अविभावकगण अपने-अपने परिवार के विद्यार्थियों पर अपेक्षित नियंत्रण नहीं कर पाते। फलतः उनका आक्रोश अपने-अपने अविभावकों के प्रति भीतर-भीतर सुलगता रहता है; जिसका विस्फोट वे साथियों के साथ मिलने पर रेल, बस, स्कूल, कॉलेज और अन्य जगहों में करते हैं। 

आज की दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति हमारे सामाज की देन है। स्वतंत्रता के पश्चात हमारी शिक्षा पद्धति को विल्कुल परिष्कृत और परिमार्जित होने की आवश्यकता थी जो देश के लिए आदर्श नागरिक, कुशल कार्य कर्Ÿाा एवं गौरव मंडित सेनानी उत्पन्न करता और हर विद्यार्थी को सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक क्षेत्र में सम्मान की जिन्दगी बसर करने के लिए अपेक्षित अवसर प्रदान करता परन्तु वर्तमान शिक्षा ने विद्यार्थियो को हर तरह से अयोग्य और चरित्रहीन बना दिया है। इस शिक्षा ने ही अह्लाद की जगह अवसाद, हर्ष की जगह विषाद और उल्लास की जगह गम की सूचना देनेवाली सर्वाधिक कलुषित और भयावह बेकारी की समस्या उत्पन्न कर विद्यार्थी वर्ग को अति अनुशासनहीन बना दिया है।

राजनीति दहकते अंगारों की प्रज्वलित शिखा नही, वह तो सुरभित सुमनो की सुगन्ध-सुवासित माला है लेकिन आज के तथाकथित कुछ पद लोलुप और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों ने राजनीति के इस पवित्र प्रांगण को छल-छद्म का अखाड़ा बना दिया है, कमनीय कुसमांे के इस हार को सर्प की माला बना दिया है और गलित-दलित दो कौड़ी की बाजारू और बासी राजनीति के पंक में धकेल कर उनके पाक दामन को कलूषित और कलंकित कर दिया है।

विद्यार्थियों में बढती अनुशासनहीनता के लिए समान रूप से जिम्मेदार शिक्षाविद, समाजिक-कार्यकर्Ÿाा, राजनीतिज्ञ, अविभावक, शिक्षक एवं प्रशासक हैं जो इस समाज के ही शसक्त एवं प्रबुद्ध वर्ग कहे जाते हैं। अतः स्पष्टरूपेण यह कहा ही जायेगा कि विद्यार्थियों में बढती अनूशासनहीनता कि लिए एकमात्र समाज ही उŸारदायी है।

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Gayatry Sadhna

प्रस्तावना
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            आदिकाल से वेद माता गायत्री साधना से संबंधित लेख, पुस्तक तथा विभिन्न प्रकार के ग्रन्थों का अघ्ययन होता रहा है और आज भी इस गुढ रहस्य को जानने का निरन्तर प्रयास चल रहा है। जो जानकारियाँ मैने बचपन से अबतक अपने पूर्वजों से और अल्प अध्ययन से प्राप्त किया है उसे आप सबों तक उपलब्ध कराने का प्रयास मात्र है। अब इसकी सफलता या असफलता आप के कसौटी पर निर्भर करता है। 

          गायत्री साधना इतना प्रभावशाली होता है जिससे व्यक्ति की आत्मिक कुण्डलिनी जागृत हो जाती है, व्यक्ति के समाधि प्रवेश का प्रमुख मंत्रों मे गिना जाता है। जिसका उल्लेख हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। इसका सबसे प्रबल उदाहरण गायत्री शक्ति पीठ के संस्थापक आचार्य श्री राम शर्मा हैं जिन्होंने इस प्रबल मंत्र से अपनी कुण्डलीनि जागृत कर लिया था। 

लेखकीय

            आज हमारा समाज 21 वी सदी में प्रवेश कर गया है, हम आधुनिक युग में पले बढे तथा आर्थिक युग में जीवन यापन कर रहे है। आधुनिक युग में यांत्रिक उपकरणो के सहारे लोग जीवन यापन करने को बाध्य हैं इसके विना जीवन की कल्पना नही की जा सकती है। अर्थ की प्रधानता ही जीवन का उद्देश्य हो गया है। जब जीवन में अर्थ प्रधान हो जाता है तो पूजा पाठ, धर्म, आस्था, विश्वास, साधना के लिए समय नही मिल पाता है। परन्तु सत्य प्रतिषत सत्यता के साथ डंके की चोट पर कहा जा सकता है कि यदि संयम के साथ वेद माता गायत्री की साधना की जाय तो निश्चय ही हमारे जीवन की जटिलताएँ सरल हो सकती है।

परिचय 

               हन्दु धर्म  में गायत्री मंत्र कि शक्ति एवं महत्ता से लोग भलीभाँति परिचित होते हैं। यह एक वैदिक मंत्र है वेदों में इसे महामंत्र कहा गया है इससे बडा़ कोई और मंत्र नही है, कलियुग में यह अमृत के समान है। इस मंत्र की महत्ता एवं चमत्कार केवल भारतवर्ष में ही नही वरन संसार के हर कोने में रहने वाले सभी मानव जाति के सामने आया है। इसे यदि भौतिक सुखों के लिए साधा जाय तो भौतिक सुख-सुविधाओं में बृद्धि होगाी और यदि मोक्ष की कामना लेकर उपासना की जाय तो निश्चय ही मौक्ष की प्राप्ति होगी। यदि कोई व्यक्ति विभिन्न प्रकार के विघ्न बाधाओं से घिरा हो और उससे छुटकारा पाना चाहता हो तो उसे गायत्री साधना का सहारा लेना चाहिए। गायत्री मंत्र को संसार की आत्मा माने गए साक्षत सूर्य देवता की उपासना के लिए प्रबल एवं अत्यंत फलदायी माना गया है। यह मंत्र निरोग काया के साथ-साथ सुख, समृद्धि, यश एवं ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है।

गायत्री मंत्र का इतिहास 

           यद्यपि गायत्री एक वैदिक छंद है, तथापि इसकी मान्यता एक देवी के रूप में विराजमान है। इस मंत्र को सभी मंत्रो का राजा कहा जाता है। इस मंत्र को मानव जाति के कल्याण के लिए सर्वप्रथम भारत के महान ऋषि विश्वामित्र ने अपने कठोर तपस्या के द्वारा ब्रम्हा से प्राप्त कर, इसे सिद्व करके सम्पूर्ण साधना विधि का निर्माण किया और इस तरह यह मंत्र जनमानस तक पहुँचाने का कार्य किया। इसी मंत्र के बल पर महर्षि विश्वामित्र ने एक अलग विश्व का निमार्ण करने में सक्षम हो सके। महर्शि विश्वामित्र ने अपने पुरूषत्व एवं तपोबल से राजा त्रिशंकु को नश्वर शरीर के साथ स्वर्ग भेज दिया लेकिन प्रकृति नियम के विरूद्ध होने के कारण वह स्वर्ग और पृथवी के बीच उलझकर रह गया तो ब्रम्हऋषि ने एक नये त्रिशंकु स्वर्ग का निर्माण कर दिया।

गायत्री विज्ञान

           जिस प्रकार संगीत सुनकर मनुष्य सुख और दुःख का अनुभव करता है उसी प्रकार गायत्री साधना को व्यक्ति महसूस कर सकता है उसका वर्णन नही कर सकता है। भगवन व्यास जी कहते हैं ‘‘ जिस प्रकार समस्त पष्पों का रस मधु होता है, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है उसी प्रकार गायत्री मंत्र समस्त वेदों का सार है। इस मन्त्र उच्चारण करने पर एक लाख तरह की तरंगें उत्पन्न होती है जिससे व्यक्ति तनावमुक्त होता है और मन को शांति का अनुभव होता है, तरंगों का संचार हमारी सांसों द्वारा पूरे शरीर में होता है जिससे कई रोगों का निदान होता है। 

          आज इस बात को वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा सिद्ध हो गया है कि मन्त्रों के उच्चारण से विद्युत तरंग उत्पन्न होता है जो मनुष्य के मानसपटल पर अंकित हो जाता है जो उस व्यक्ति को इच्छित कार्य में सफलता दिलाने में सहायक होता है। एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति को मन्त्र सिद्धि प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार वाद्य यंत्र में अलग-अलग तार विभिन्न प्रकार के घ्वनि तरंग उत्पन्न करता है उसी प्रकार मन्त्रों के अलग-अलग शब्द उच्चारण जो तरंग उत्पन्न करता है इसका स्पर्श मानव मस्तिक पर अलग-अलग तरीके से प्रभाव उत्पन्न करता है। विश्व के विभिन्न प्रातांे में इसके चमत्कार के सत्यकथा आये दिन पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं।


गायत्री मंत्र का महत्व

          ब्रम्हा से प्राप्त गायत्री मंत्र को मंत्रों में ब्रम्हास्त्र माना गया है, ऐसा माना जाता कि जिस तरह ब्रम्हास्त्र कभी विफल नही होता है उसी प्रकार गायत्री साधना कभी निष्फल नहीं जाती है इसका प्रयोग कभी व्यर्थ नहीं होता है। इस मन्त्र का महत्त्व तो अनंत है ‘‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’’ संक्षिप्त में इसके महत्त्व को इस प्रकार वर्णन किया जा सकता है:-

1) दिमाग को शांत रखता है (घ्वनि मंत्र विज्ञान)
2) रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है (उर्जा विज्ञान)
3) एकाग्रता एवं सीखने की क्षमता बढाता है
4) स्वास प्रकिया में सुधार। (स्वर विज्ञान)
5) हृदय को स्वस्थ्य रखता है।
6) शरीर की तंत्रिकाओं की कार्यप्रणाली में सुधार
7) तनाव से मुक्ति। 
8) दिमाग को मजबूत बनाता है।
9) त्वचा में निखार लाता है।
10) स्वास रोग से मुक्ति।

गायत्री मंत्र का अर्थ

ॐ             - प्रणव            
भूर            - मनुश्य को जीवन देने वाला
भूवः           - दुःखों का नाश करने वाला
स्वः            - सुख प्रदाण करने वाला
तत            - वह
सवितुर      - सूर्य की भांति तेज 
वरेण्यं        - सबसे उत Ÿाम 
भर्गो          - उद्धार करने वाला
देवस्य       - परमात्मा
धीमहि       - आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो          - बुद्धि
यो             - जो 
नः             -  हमारी
प्रचो दयात् - हमें शक्ति प्रदान करें (प्रार्थना)

गायत्री मंत्र से रोग का इलाज

            
           म्ंत्र क्या है ? इसे समझने के लिए आचार्य श्री राम शर्मा के शब्दों में ‘‘मननात् त्रायते इति मत्रः’’ अर्थात जिसके मनन से मुक्ति मिले अथवा त्राण मिले। गायत्री मंत्र अक्षरों का ऐसा दूर्लभ एवं विशिष्ठ संयोग है जो मनुष्य को अचेतन से चेतन करने में सक्षम होता है। जिस प्रकार संगीत से चिकित्सा किया जाता है उसी प्रकार मुत्र विज्ञान से भी व्यक्ति के रोग का इलाज किया जा सकता है। जो व्यक्ति निरामिष भोजन तथा नियमित गायत्री मन्त्र का पाठ करता है उन्हें हृदयरोग तथा उच्चरक्तचाप नही होता है। गायत्री मन्त्र से कैंसर, अल्सर, डायबिटीज, हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर, ट्युमर, दमा, अस्थामा, सफेद दाग, दाद, खाज, खुजली, मोटापा, कब्ज, गैस, ऐसिडिटी, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, जोड़ों का दर्द, सर्वाइकल, अनिन्द्रा, तनाव, महिलाओं तथा पुरूषों के गुप्त रोगों का इलाज किया जाता है। ये चिकित्सायें इस प्रकार की होती   है:-

1) सर्यवाष्प चिकित्सा 2) नस्यपूरन चिकित्सा
3) कल्प चिकित्सा 4) अग्निहोत्रि चिकित्सा
5) आहार चिकित्सा 6) जल चिकित्सा
7) मिट्टी चिकित्सा         8) शक चिकित्सा
9) सथिमवाथ 10) सजोक चिकित्सा
11) योग निंद्रा 12) योग चिकित्सा
13) गरमपाद स्नान 14) जलनेती
15) वमन 16) मनोवैज्ञानिक चिकित्सा
17) विपसना ध्यान 18) संगीत चिकित्सा
19) नत्य चिकित्सा 20) आध्यात्मिक चिकित्सा

गायत्री मंत्र से ग्रह शांति

          ग्रहों कि शांति के लिए गायत्री साधना में कुछ मन्त्र दिये गये हैं जिसके जप करने से व्यक्ति के जीवन में आनेवाले विघ्नों में कमी लायी जा सकती है। हर ग्रह के लिए अलग-अलग मन्त्र दिये गये हैं जो इस प्रकार है:-

केतु ग्रह शांति के लिए - ऊँ पù पुत्राय विùहे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु                                          प्रचोदयात्।
राहु ग्रह शांति के लिए - ऊँ शिरो रूपाय विùहे अमृतशाय धीमहि तन्नो राहुः                                     प्रचोदयात्।
शनि शांति के लिए    - ऊँ भग्भवाय विùहे मृत्युरूपाय धीमहि, तन्नो सौरीः                                      प्रचोदयात्।
शुक्र ग्रह शांति के लिए - ऊँ भृगुराजाय विùहे दिव्य देहाय धीमहि, त़न्नो                                            शुक्र  प्रचोदयात्।
गुरू ग्रह शांति के लिए - ऊँ अंगिरो जाताय विùहे वाचस्पतये धीमहि, तन्नो                                        गुरू प्रचोदयात्।
बुध ग्रह शांति के लिए - ऊँ गजध्वजाय विùहे सुख हस्ताय धीमहि तन्नो बुधः                                     प्रचोदयात्।
मंगल ग्रह शांति के लिए - ऊँ अंगारकाय विùहे शक्ति हस्ताय धीमहि, तन्नो                                        भौमः प्रचोदयात्।
चन्द्र ग्रह शांति के लिए - ऊँ अमृतांगाय विùहे कला रूपाय धीमहि, तन्नो                                          सोमः प्रचोदयात्।
सूर्य ग्रह शांति के लिए - ऊँ आदित्याय विùहे भास्कराय धीमहि, तन्नो भानुः                                      प्रचोदयात्।

गायत्री विविध मंत्र

गायत्री मन्त्र तथा अन्य देवताओं के मन्त्र मिला कर कुछ मन्त्र का निर्माण किया गया है जिससे उसका परिणाम बहुत ही प्रभावशाली हो जाता है। 

1) गायत्री मन्त्र               : ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्संवितुर्वरेण्यं भर्गाे देवस्य 
                                          धीमहि ध्यिो यो नः प्रचोदयात्।।

2) गणेश गायत्री मन्त्र     : ऊँ एकदन्ताय विùहे, वक्रतुण्डाय  
                                         धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात।।

3) राम गायत्री मन्त्र        : ऊँ दशरथाय विùहे, सीता वल्लभाय 
                                         धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्। 

4) हनुमान गायत्री मन्त्र  : ऊँ रामदूताय विùहे वायुपूत्राय धीमहि  
                                         तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्।

5) शिव गायत्री मन्त्र      : ऊँ त्तपुरूषाय विùहे महादेवाय धीमहि 
                                         तन्नो रूद्रः प्रचोदयात।।

6) सरस्वती गायत्री मन्त्र : ऊँ सरस्वत्यै विùहे ब्रह्मपुत्रियै धीमहि 
                                         तन्नो देवी प्रचोदयात्।

7) लक्ष्मी गायत्री मन्त्र    : ऊँ महादेव्यै च विùहे विष्णु पत्न्यै च 
                                        धीमही तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।

8) ब्रम्हा गायत्री मन्त्र     : ऊँ वेदात्मने च विùहे हिरण्य गर्भाय   
                                        धीमहि, तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

9) विष्णु गायत्री मन्त्र     : ऊँ नारायणाय विùहे वासुदेवाय धीमहि 
                                         तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्। 

10) राहु गायत्री मन्त्र       : ओम् शिरोरूपाय विùहे अमृतेशाय धीमहि 
                                         तन्नो राहुः प्रचोदयात।


वेद माता गायत्री की पूजन सामग्री

          पुजन के लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए परन्तु व्यक्ति को ये नहीं समझना चाहिए कि किसी वस्तु के अभाव में यह साधना नहीं हो सकती है, इसके लिए मनुष्य में आत्मशुद्धिकरण एवं पूर्ण विश्वास होना चाहिए सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी। आसन, माला एवं जल से ही जप किया जा सकता है परन्तु विशिष्ठ पूजन के लिए निम्न सामाग्री की आवश्यकता होती है:-

गायत्री यन्त्र, गायत्री जा की तस्वीर, आसन, फूल, अरवा चावल, रोली, मौली, कुमकुम, हल्दी, जनेउ, सुपाड़ी, पान का पत्ता, अगरबत्ती, दीप, माचिस, कलश, पूजन थाली, नारियल गोटा, प्रसाद, समसामयिक फल, हवन सामग्री, हवन कुण्ड, गंगा जल, साधारण पेय जल तथा एक पूजा वाला चैकी इत्यादि।

गायत्री जी की आरती

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक कर्त्री। 
दुःख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री॥ जयति
ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत् धातृ अम्बे।
भव भयहारी, जन.हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति 
भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि।
अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥ जयति
कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥ जयति 
ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे॥ जयति 
स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी।
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी॥ जयति 
जननी हम हैं दीन-हीन, दुःख.दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे॥ जयति 
स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै।
विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥ जयति 
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये॥ जयति 
तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि-पुष्टि द्दाता।
सत मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥

गायत्री मंत्र - जप विधि

           पूजा पाठ में सबसे फलदायक एवं प्रभावी मन्त्र जप का माना गया है। सामान्यता हरेक मन्त्र को जप करने विधि एक ही होती है, परन्तु गायत्री मन्त्र का जाप यदि सुर्याेदय के पहले सुरू किया जाना चाहिए और जप सुर्योदय के पश्चात तक किया जा सकता है।  मन्त्र को जप करने का दूसरा समय दोपहर है जिसमें गायत्री मन्त्र का जप किया जा सकता है। तीसरा समय संध्याकाल में होता है यह सुर्यास्त होने के कुछ समय पहले सुरू किया जा सकता है तथा सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक किया जा सकता है। 
स्नान करके अपने शरीर को शुद्ध करके मन्त्र का जप रूद्राक्ष के माला के साथ सुरू करना चाहिए। जप का स्थान घर के मंदिर में, नदी के किनारे, या किसी मंदिर में करना चाहिए। यदि संध्या काल के बाद भी मन्त्र का जाप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। 

आशा करता हूँ कि उपरोक्त जानकारियाँ आपके जीवन में काम आयेगी और आप इन जानकारियों से अपने जीवन में लाभ उठा सकेंगे। ईश्वर से प्रार्थना है कि सदा आपके तथा आपके परिवार पर कृपा दृष्टि बनाये रखेंगे। 

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Ankit Hatya Kand Ek Samvedanaheen Samaj

स्ंवेदनाहीन सामाज
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मानवता शर्मशार है, सामाज चुप है, धर्म गूंगा बन कर तमाशा देख रहा है, पुलिस खानापूर्ति कर रही है और हमारे हुक्मरान, सियासी नेतागण अपनी-अपनी रोटियाँ सेक रही है और सभी अंकित के धर की सियासी परिक्रमा कर रहे हैं। आज भी सभी होटलों में पार्टियाँ हो रही है। बार बालाएँ अपनी कमनीय छटा विखेर रही होंगी। सन्नाटा तो अंकित के घर में है, अंकित की माँ ही तो अपनी छाती पीट रही है ? कि घर का चिराग मिट गया अब वहाँ मौत का मातम और संन्नाटा पसरा है, अब बहाँ रौशनी नहीं होगी। माँ-बाप का इकलौते संतान की हत्या कर दी गयी। एक माली ने 23 वर्ष तक जिस पुष्प को सींचा, उस पौधे की सेवा कर फल देने लायक बनाया, अचानक एक पिचाश ने आकर उनके लाल-गुलाब की गला रेत कर नृशंस हत्या कर दी। आज के सामाज का जमीर मर गया है, या मर-मर कर जी रहा है ऐसे जीने से अच्छा तो एक बार ही मर जाना था या फिर एक सजीव के तरह इस घटना का गहन चिंतन कर एक ठोस निष्र्कष तक पहुँच कर निर्णय लेना चाहिए कि यह घटना दुबारा न हो सके।



        आज हमारे मन में बार-बार यह घटना उद्वेलित कर रही है, क्या अंकित का मुस्लिम लड़की को इतने सिद्दद से प्यार करना इतना बड़ा गुनाह था जो उसकी जिंदगी लील गया ? क्या यह घटना अंर्तआत्माए व दिलो-दिमागा को नहीं झकझोरती ? क्या यह संगठित अपराध का उदाहरण है या यह आॅनर किलिगं या फिर किसी सम्प्रदाय की क्रूरता का चिर-परिचित उदाहरण है ? सवाल जो भी हो इसका समुचित उत्तर हमें अपने सामाज से और अपने मन से पूछना पड़ेगा। यह पहला कांड नहीं है इसके अनगिनित उदाहरण हमारे अखबार में भरे परे हैं चाहे वह रिजवानुर-रहमान केस हो या भावना-अभिषेक केस या मनोज-बबली केस या फिर नीतीश-कटारा हत्याकांड हो।



       मोहम्मद कैफ ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर लिखा: ‘‘हम किस युग में जी रहे है, कोई अपनी पसंद के व्यक्ति से प्यार और शादी नहीं कर सकता और ये सब दिल्ली जैसे शहरी इलाके में हो रहा है। हत्यारों को शर्म आनी चाहिए और न्याय होना चाहिए और सबसे जरूरी बात कि यह मानसिकता बदलनी चाहिए।’’



        अंकित सक्सेना अपने परिवार का इकलौता चिराग था। पेशे से वह  एक फोटोग्राफर तथा यूट्युब चैनल का काम करता था और काफी पाॅपुलर भी था। इसी बीच एक मुस्लिम लड़की सलीमा से उसे प्यार हो जाता है और बात शादी तक चली जाती है। लड़की के परिवार वाले विरोध कर रहे थे। 1 फरवरी 2018 की रात लड़की के परिजन अंकित के घर पहुँच कर उसके माता-पिता के साथ मारपीट की और बाद में अंकित की गला काटकर हत्या कर दी। पुलिस के मुताबिक और प्रत्यक्षर्शी के मुताबिक अंकित के मासुका सलीमा के परिवारवालों पर हत्या का आरोप है। 


         दिल्ली के निवासी नौजवान अंकित सक्सेना को बीच सड़क पर गला रेत कर बेरहमी से हत्या ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि लगातार हिंसक हो रहे एक समुदाय भारतीय सामाज में ऋषि मुनियों के देश में जहाँ ‘‘यत्र नारी पूजयंते तत्र देवता रम्यंते’’ का मंत्र वैदिक सभ्यता मेे दिया गया और इसी सिद्धान्त पर सामाज की रचना की गई वहाँ अब एक नारी की इच्छा की कोई जगह नही है। 
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मिथुन राशि वालों के लिए मित्र और शत्रु ग्रह !

मेष राशि नमस्कार दोस्तों, आज से सभी 12 राशियों की जानकारी देने के लिए   एक श्रृंखला सुरू करने जा रही हैं जिसमे हर दिन एक एक राशि के बारे में...