प्रस्तावना
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आदिकाल से वेद माता गायत्री साधना से संबंधित लेख, पुस्तक तथा विभिन्न प्रकार के ग्रन्थों का अघ्ययन होता रहा है और आज भी इस गुढ रहस्य को जानने का निरन्तर प्रयास चल रहा है। जो जानकारियाँ मैने बचपन से अबतक अपने पूर्वजों से और अल्प अध्ययन से प्राप्त किया है उसे आप सबों तक उपलब्ध कराने का प्रयास मात्र है। अब इसकी सफलता या असफलता आप के कसौटी पर निर्भर करता है।
गायत्री साधना इतना प्रभावशाली होता है जिससे व्यक्ति की आत्मिक कुण्डलिनी जागृत हो जाती है, व्यक्ति के समाधि प्रवेश का प्रमुख मंत्रों मे गिना जाता है। जिसका उल्लेख हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। इसका सबसे प्रबल उदाहरण गायत्री शक्ति पीठ के संस्थापक आचार्य श्री राम शर्मा हैं जिन्होंने इस प्रबल मंत्र से अपनी कुण्डलीनि जागृत कर लिया था।
लेखकीय
आज हमारा समाज 21 वी सदी में प्रवेश कर गया है, हम आधुनिक युग में पले बढे तथा आर्थिक युग में जीवन यापन कर रहे है। आधुनिक युग में यांत्रिक उपकरणो के सहारे लोग जीवन यापन करने को बाध्य हैं इसके विना जीवन की कल्पना नही की जा सकती है। अर्थ की प्रधानता ही जीवन का उद्देश्य हो गया है। जब जीवन में अर्थ प्रधान हो जाता है तो पूजा पाठ, धर्म, आस्था, विश्वास, साधना के लिए समय नही मिल पाता है। परन्तु सत्य प्रतिषत सत्यता के साथ डंके की चोट पर कहा जा सकता है कि यदि संयम के साथ वेद माता गायत्री की साधना की जाय तो निश्चय ही हमारे जीवन की जटिलताएँ सरल हो सकती है।
परिचय
हन्दु धर्म में गायत्री मंत्र कि शक्ति एवं महत्ता से लोग भलीभाँति परिचित होते हैं। यह एक वैदिक मंत्र है वेदों में इसे महामंत्र कहा गया है इससे बडा़ कोई और मंत्र नही है, कलियुग में यह अमृत के समान है। इस मंत्र की महत्ता एवं चमत्कार केवल भारतवर्ष में ही नही वरन संसार के हर कोने में रहने वाले सभी मानव जाति के सामने आया है। इसे यदि भौतिक सुखों के लिए साधा जाय तो भौतिक सुख-सुविधाओं में बृद्धि होगाी और यदि मोक्ष की कामना लेकर उपासना की जाय तो निश्चय ही मौक्ष की प्राप्ति होगी। यदि कोई व्यक्ति विभिन्न प्रकार के विघ्न बाधाओं से घिरा हो और उससे छुटकारा पाना चाहता हो तो उसे गायत्री साधना का सहारा लेना चाहिए। गायत्री मंत्र को संसार की आत्मा माने गए साक्षत सूर्य देवता की उपासना के लिए प्रबल एवं अत्यंत फलदायी माना गया है। यह मंत्र निरोग काया के साथ-साथ सुख, समृद्धि, यश एवं ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है।
गायत्री मंत्र का इतिहास
यद्यपि गायत्री एक वैदिक छंद है, तथापि इसकी मान्यता एक देवी के रूप में विराजमान है। इस मंत्र को सभी मंत्रो का राजा कहा जाता है। इस मंत्र को मानव जाति के कल्याण के लिए सर्वप्रथम भारत के महान ऋषि विश्वामित्र ने अपने कठोर तपस्या के द्वारा ब्रम्हा से प्राप्त कर, इसे सिद्व करके सम्पूर्ण साधना विधि का निर्माण किया और इस तरह यह मंत्र जनमानस तक पहुँचाने का कार्य किया। इसी मंत्र के बल पर महर्षि विश्वामित्र ने एक अलग विश्व का निमार्ण करने में सक्षम हो सके। महर्शि विश्वामित्र ने अपने पुरूषत्व एवं तपोबल से राजा त्रिशंकु को नश्वर शरीर के साथ स्वर्ग भेज दिया लेकिन प्रकृति नियम के विरूद्ध होने के कारण वह स्वर्ग और पृथवी के बीच उलझकर रह गया तो ब्रम्हऋषि ने एक नये त्रिशंकु स्वर्ग का निर्माण कर दिया।
गायत्री विज्ञान
जिस प्रकार संगीत सुनकर मनुष्य सुख और दुःख का अनुभव करता है उसी प्रकार गायत्री साधना को व्यक्ति महसूस कर सकता है उसका वर्णन नही कर सकता है। भगवन व्यास जी कहते हैं ‘‘ जिस प्रकार समस्त पष्पों का रस मधु होता है, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है उसी प्रकार गायत्री मंत्र समस्त वेदों का सार है। इस मन्त्र उच्चारण करने पर एक लाख तरह की तरंगें उत्पन्न होती है जिससे व्यक्ति तनावमुक्त होता है और मन को शांति का अनुभव होता है, तरंगों का संचार हमारी सांसों द्वारा पूरे शरीर में होता है जिससे कई रोगों का निदान होता है।
आज इस बात को वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा सिद्ध हो गया है कि मन्त्रों के उच्चारण से विद्युत तरंग उत्पन्न होता है जो मनुष्य के मानसपटल पर अंकित हो जाता है जो उस व्यक्ति को इच्छित कार्य में सफलता दिलाने में सहायक होता है। एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति को मन्त्र सिद्धि प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार वाद्य यंत्र में अलग-अलग तार विभिन्न प्रकार के घ्वनि तरंग उत्पन्न करता है उसी प्रकार मन्त्रों के अलग-अलग शब्द उच्चारण जो तरंग उत्पन्न करता है इसका स्पर्श मानव मस्तिक पर अलग-अलग तरीके से प्रभाव उत्पन्न करता है। विश्व के विभिन्न प्रातांे में इसके चमत्कार के सत्यकथा आये दिन पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं।
गायत्री मंत्र का महत्व
ब्रम्हा से प्राप्त गायत्री मंत्र को मंत्रों में ब्रम्हास्त्र माना गया है, ऐसा माना जाता कि जिस तरह ब्रम्हास्त्र कभी विफल नही होता है उसी प्रकार गायत्री साधना कभी निष्फल नहीं जाती है इसका प्रयोग कभी व्यर्थ नहीं होता है। इस मन्त्र का महत्त्व तो अनंत है ‘‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’’ संक्षिप्त में इसके महत्त्व को इस प्रकार वर्णन किया जा सकता है:-
1) दिमाग को शांत रखता है (घ्वनि मंत्र विज्ञान)
2) रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है (उर्जा विज्ञान)
3) एकाग्रता एवं सीखने की क्षमता बढाता है
4) स्वास प्रकिया में सुधार। (स्वर विज्ञान)
5) हृदय को स्वस्थ्य रखता है।
6) शरीर की तंत्रिकाओं की कार्यप्रणाली में सुधार
7) तनाव से मुक्ति।
8) दिमाग को मजबूत बनाता है।
9) त्वचा में निखार लाता है।
10) स्वास रोग से मुक्ति।
गायत्री मंत्र का अर्थ
ॐ - प्रणव
भूर - मनुश्य को जीवन देने वाला
भूवः - दुःखों का नाश करने वाला
स्वः - सुख प्रदाण करने वाला
तत - वह
सवितुर - सूर्य की भांति तेज
वरेण्यं - सबसे उत Ÿाम
भर्गो - उद्धार करने वाला
देवस्य - परमात्मा
धीमहि - आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो - बुद्धि
यो - जो
नः - हमारी
प्रचो दयात् - हमें शक्ति प्रदान करें (प्रार्थना)
गायत्री मंत्र से रोग का इलाज
म्ंत्र क्या है ? इसे समझने के लिए आचार्य श्री राम शर्मा के शब्दों में ‘‘मननात् त्रायते इति मत्रः’’ अर्थात जिसके मनन से मुक्ति मिले अथवा त्राण मिले। गायत्री मंत्र अक्षरों का ऐसा दूर्लभ एवं विशिष्ठ संयोग है जो मनुष्य को अचेतन से चेतन करने में सक्षम होता है। जिस प्रकार संगीत से चिकित्सा किया जाता है उसी प्रकार मुत्र विज्ञान से भी व्यक्ति के रोग का इलाज किया जा सकता है। जो व्यक्ति निरामिष भोजन तथा नियमित गायत्री मन्त्र का पाठ करता है उन्हें हृदयरोग तथा उच्चरक्तचाप नही होता है। गायत्री मन्त्र से कैंसर, अल्सर, डायबिटीज, हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर, ट्युमर, दमा, अस्थामा, सफेद दाग, दाद, खाज, खुजली, मोटापा, कब्ज, गैस, ऐसिडिटी, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, जोड़ों का दर्द, सर्वाइकल, अनिन्द्रा, तनाव, महिलाओं तथा पुरूषों के गुप्त रोगों का इलाज किया जाता है। ये चिकित्सायें इस प्रकार की होती है:-
1) सर्यवाष्प चिकित्सा 2) नस्यपूरन चिकित्सा
3) कल्प चिकित्सा 4) अग्निहोत्रि चिकित्सा
5) आहार चिकित्सा 6) जल चिकित्सा
7) मिट्टी चिकित्सा 8) शक चिकित्सा
9) सथिमवाथ 10) सजोक चिकित्सा
11) योग निंद्रा 12) योग चिकित्सा
13) गरमपाद स्नान 14) जलनेती
15) वमन 16) मनोवैज्ञानिक चिकित्सा
17) विपसना ध्यान 18) संगीत चिकित्सा
19) नत्य चिकित्सा 20) आध्यात्मिक चिकित्सा
गायत्री मंत्र से ग्रह शांति
ग्रहों कि शांति के लिए गायत्री साधना में कुछ मन्त्र दिये गये हैं जिसके जप करने से व्यक्ति के जीवन में आनेवाले विघ्नों में कमी लायी जा सकती है। हर ग्रह के लिए अलग-अलग मन्त्र दिये गये हैं जो इस प्रकार है:-
केतु ग्रह शांति के लिए - ऊँ पù पुत्राय विùहे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु प्रचोदयात्।
राहु ग्रह शांति के लिए - ऊँ शिरो रूपाय विùहे अमृतशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात्।
शनि शांति के लिए - ऊँ भग्भवाय विùहे मृत्युरूपाय धीमहि, तन्नो सौरीः प्रचोदयात्।
शुक्र ग्रह शांति के लिए - ऊँ भृगुराजाय विùहे दिव्य देहाय धीमहि, त़न्नो शुक्र प्रचोदयात्।
गुरू ग्रह शांति के लिए - ऊँ अंगिरो जाताय विùहे वाचस्पतये धीमहि, तन्नो गुरू प्रचोदयात्।
बुध ग्रह शांति के लिए - ऊँ गजध्वजाय विùहे सुख हस्ताय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात्।
मंगल ग्रह शांति के लिए - ऊँ अंगारकाय विùहे शक्ति हस्ताय धीमहि, तन्नो भौमः प्रचोदयात्।
चन्द्र ग्रह शांति के लिए - ऊँ अमृतांगाय विùहे कला रूपाय धीमहि, तन्नो सोमः प्रचोदयात्।
सूर्य ग्रह शांति के लिए - ऊँ आदित्याय विùहे भास्कराय धीमहि, तन्नो भानुः प्रचोदयात्।
गायत्री विविध मंत्र
गायत्री मन्त्र तथा अन्य देवताओं के मन्त्र मिला कर कुछ मन्त्र का निर्माण किया गया है जिससे उसका परिणाम बहुत ही प्रभावशाली हो जाता है।
1) गायत्री मन्त्र : ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्संवितुर्वरेण्यं भर्गाे देवस्य
धीमहि ध्यिो यो नः प्रचोदयात्।।
2) गणेश गायत्री मन्त्र : ऊँ एकदन्ताय विùहे, वक्रतुण्डाय
धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात।।
3) राम गायत्री मन्त्र : ऊँ दशरथाय विùहे, सीता वल्लभाय
धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्।
4) हनुमान गायत्री मन्त्र : ऊँ रामदूताय विùहे वायुपूत्राय धीमहि
तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्।
5) शिव गायत्री मन्त्र : ऊँ त्तपुरूषाय विùहे महादेवाय धीमहि
तन्नो रूद्रः प्रचोदयात।।
6) सरस्वती गायत्री मन्त्र : ऊँ सरस्वत्यै विùहे ब्रह्मपुत्रियै धीमहि
तन्नो देवी प्रचोदयात्।
7) लक्ष्मी गायत्री मन्त्र : ऊँ महादेव्यै च विùहे विष्णु पत्न्यै च
धीमही तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।
8) ब्रम्हा गायत्री मन्त्र : ऊँ वेदात्मने च विùहे हिरण्य गर्भाय
धीमहि, तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।
9) विष्णु गायत्री मन्त्र : ऊँ नारायणाय विùहे वासुदेवाय धीमहि
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।
10) राहु गायत्री मन्त्र : ओम् शिरोरूपाय विùहे अमृतेशाय धीमहि
तन्नो राहुः प्रचोदयात।
वेद माता गायत्री की पूजन सामग्री
पुजन के लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए परन्तु व्यक्ति को ये नहीं समझना चाहिए कि किसी वस्तु के अभाव में यह साधना नहीं हो सकती है, इसके लिए मनुष्य में आत्मशुद्धिकरण एवं पूर्ण विश्वास होना चाहिए सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी। आसन, माला एवं जल से ही जप किया जा सकता है परन्तु विशिष्ठ पूजन के लिए निम्न सामाग्री की आवश्यकता होती है:-
गायत्री यन्त्र, गायत्री जा की तस्वीर, आसन, फूल, अरवा चावल, रोली, मौली, कुमकुम, हल्दी, जनेउ, सुपाड़ी, पान का पत्ता, अगरबत्ती, दीप, माचिस, कलश, पूजन थाली, नारियल गोटा, प्रसाद, समसामयिक फल, हवन सामग्री, हवन कुण्ड, गंगा जल, साधारण पेय जल तथा एक पूजा वाला चैकी इत्यादि।
गायत्री जी की आरती
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक कर्त्री।
दुःख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री॥ जयति
ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत् धातृ अम्बे।
भव भयहारी, जन.हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति
भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि।
अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥ जयति
कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥ जयति
ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे॥ जयति
स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी।
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी॥ जयति
जननी हम हैं दीन-हीन, दुःख.दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे॥ जयति
स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै।
विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥ जयति
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये॥ जयति
तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि-पुष्टि द्दाता।
सत मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥
गायत्री मंत्र - जप विधि
पूजा पाठ में सबसे फलदायक एवं प्रभावी मन्त्र जप का माना गया है। सामान्यता हरेक मन्त्र को जप करने विधि एक ही होती है, परन्तु गायत्री मन्त्र का जाप यदि सुर्याेदय के पहले सुरू किया जाना चाहिए और जप सुर्योदय के पश्चात तक किया जा सकता है। मन्त्र को जप करने का दूसरा समय दोपहर है जिसमें गायत्री मन्त्र का जप किया जा सकता है। तीसरा समय संध्याकाल में होता है यह सुर्यास्त होने के कुछ समय पहले सुरू किया जा सकता है तथा सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक किया जा सकता है।
स्नान करके अपने शरीर को शुद्ध करके मन्त्र का जप रूद्राक्ष के माला के साथ सुरू करना चाहिए। जप का स्थान घर के मंदिर में, नदी के किनारे, या किसी मंदिर में करना चाहिए। यदि संध्या काल के बाद भी मन्त्र का जाप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए।
आशा करता हूँ कि उपरोक्त जानकारियाँ आपके जीवन में काम आयेगी और आप इन जानकारियों से अपने जीवन में लाभ उठा सकेंगे। ईश्वर से प्रार्थना है कि सदा आपके तथा आपके परिवार पर कृपा दृष्टि बनाये रखेंगे।
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