शनि की दशा को कैसे शुभ करें
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हिन्दु धर्मग्रंथों के अनुसार सूर्य पुत्र कर्म फल दाता शनिदेव का जन्म सूर्यदेव की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या को हुआ था। इनका वर्ण काला था जिसके वजह से पिता ने इन्हें अपनाने से इन्कार कर दिया। आदि काल से इनका जीवन तथा रहस्य कौतुहल के विषय रहे हैं कुछ लोग इन्हें कू्रर ग्रह के :प में परिभाषित करते हैं तो कुछ ज्योतिषी पृथवी पर रहने वाले व्यक्तियों को उचित-अनुचित कर्मा के प्रतिफल देनेवाले न्याय के देवता मानते हैं। अगर हम दो-चार व्यक्ति के कुण्डली का विश्लेशण करें तो पता चलता है कि हर मनुष्य के जीवन में शनि की दशा होती ही है। यदि शनिदेव किसी के भाग्य पत्रिका में उच्च स्थान में या स्वस्थान में (तुला राशि में उच्च) बैठे होते हैं तो रंक को राजा, मान सम्मान, पद और प्रतिष्ठा देते हैं और अगर मेष राशि में हो तो व्यक्ति के जीवन में समस्याओं का अंबार लगा रहता है। जिस प्रकार न्यायधीश सजा देकर अपराधियों को सुधारने का प्रयत्न करता है उसी प्रकार न्याय के देवता शनिदेव सजा देकर मनुष्य के जीवन को शुद्ध एवं परिस्कृत कर देते हैं।
यदि किसी अत्यंत सफल व्यक्ति के जीवन को अनुसंधान के :प में देखते हैं तो पता चलता है कि व्यक्ति के भाग्योदय में मूलतः शनिदेव के प्रभाव से ही व्यक्ति कवि, रचनाकार, बुद्धिमान, किसी सामाचार चैनल का विश्लेशक, सफल राजनितज्ञ, धनी, सफल व्यापारी, लाटरी, सट्टेबाज, सुखमय वैवाहिक जीवन, धनी पत्नी, अच्छी संतान, लम्बी आयु इत्यादि जैसे सम्मान प्राप्त करता है।
यदि किसी असफल या रंक व्यक्ति के जीवन का अध्ययन करते है तो पता चलता है कि व्यक्ति के अवनति में भी शनिदेव का ही योगदान होता है। इनके प्रभाव से ही व्यक्ति रंक, मान हानि, नशेबाजी, व्यभिचारी, विवाहेŸार संबंध का होना, विवाह में देरी होना, किसी कार्य में विघ्न, मानसिक रोग, धन की हानि, संतान न होना, निरक्षर होना, कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगना इत्यादि।
शनिदेव श्री कृष्ण भगवान के ध्यान में लीन थे उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उनके पास आयी लेकिन ध्यान में लीन होने के कारण शनिदेव उनकी इच्छा पूर्ति नही कर सके जिससे क्रोधित होकर उनकी पत्नी सती, साध्वी ने उन्हें श्राप दे दिया कि आप जिसे भी देखेंगे उसका विनाश हो जायेगा। बाद में उन्हें अपने भूल का आभास होता है परन्तु उनको श्राप से मुक्त करने की शक्ति न होने के कारण शनिदेव श्रापित होकर रह गये। एसे श्रापित होने के कारण शनिदेव की दृष्टि हमेशा नीची रहती है जिससे कोई दिखाई न दे जिससे किसी का विनाश हो।
स्वर्ग हो या पृथवीलोक, देवता हो या मनुष्य शनिदेव का प्रभाव सभी पर समान :प से होता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भगवान श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ, भगवान गणेश जी का सिर कट गया, रावण वध, पांडवों को वनवास हुआ, राजा विक्रमादित्य को अपार कष्ट मिला तथा राजा हरिश्चन्द्र को चांडाल का कर्म करना पड़ा।
अलग-अलग राशि पर शनिदेव का प्रभाव भी अलग-अलग होता है।
मेष राशि का शनि - इस राशि में शनि नीच का होता है इससे व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी, हठी, क्रोधी तथा बुरे कर्मो की ओर ले जाता है। नाते-रिश्तों से विरोध होता है तथा रिश्तेदारों से दूरियाँ बढ जाती है।
बृष राशि का शनि - इस राशि में शनि के विराजमान होने से व्यक्ति धूर्त, अविश्वसनीय, राजनीति में प्रवीण होता है तथा इन क्षेत्रों में विशेष सफलता मिलती है। संतात पक्ष बहुत अच्छा नही होता है। ऐसे व्यक्तियों का :झान विशेष कर साहित्य, संगीत तथा सौन्दर्य की तरफ होता है।
कर्क राशि का शनि - इस प्रकार का व्यक्ति परिश्रमी, गंभीर, चिन्तक, तथा अपने बात पर अडिग रहनेवाला होता है। शनि के महादशा के समय इन्हें काफी परिश्रम करना पड़ता है तथा धन की हानि भी होती है।
तुला राशि का शनि - इस प्रकार का व्यक्ति महात्वाकांक्षी, भाषण, प्रवचन, स्वतंत्र विचार, आर्थिक एवं मानसिक क्षमता में मजबूती प्रदान करता है।
वृश्चिक राषि का शनि - इस राशि में शनि व्यक्ति को क्रोध, जोश, अभिमान, वैराग्य, गंभीर स्वभाव एवं ईष्यालु की भावना जागृत करता है। महादशा के समय धन की हानि एवं मान-सम्मान में क्षय होता है।
धनु राषि का शनि - इस राशि में शनि व्यक्ति को ज्ञानवान, परिश्रमी, नेक दिल का व्यक्ति तथा परोपकारी बनाता है। महादशा के समय सुख तथा शिक्षा के क्षेत्र में अपार सफलता मिलती है।
मकर राशि का शनि - इस राशि में शनि व्यक्ति को ईश्वर के सानिद्ध का अवसर प्रदान करता है। करोबार, आर्थिक लाभ, जमीन-जायदाद के क्षेत्र में सफलता दिलाता है। शनि के कारण ये शंकालु, लालची एवं स्वार्थी प्रवृति के होते हैं।
कुम्भ राशि का शनि - इस राशि में शनि व्यक्ति को अहंकारी, राजनीति, कूटनिति, बुद्धिमान बनाता है। ये व्यक्ति व्यवहारिक, नेत्र रोग से पिडित एवं धनी होते हैं।
मीन राशि का शनि - इस राशि में शनि व्यक्ति को गंभीर, ईर्ष्यालू तथा महत्वाकांक्षी बनाता है। शनिदेव के प्रभाव से व्यक्ति उदार, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में समृद्ध होता है।
इतने प्रभावशाली ग्रह को शांत करने के लिए कुछ पूजा-पाठ, मंत्र तथा कुछ टोटके हैं जिसके प्रभाव से न्याधीश शनिदेव को शांत तथा प्रसंन्न किया जा सकता है -
1) शनिदेव के नाम इस प्रकार है - कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्श्रर, मंद तथा पिप्पलाश्रय। इसका पाठ करें।
2) शनिदेव के बीज मंत्र - ऊँ शं शनैश्चराय नमः। का जाप करें
शनिवार को पीपल वृ़क्ष की पूजा निम्न मंत्र से करें -
आयुः प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्व सम्पदम्।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गतः।
विप्श्रेव्श्रराय विव्श्रसम्भवाय विव्श्रपतये गोविन्दाय नमो नमः।
3) वैदिक मंत्र - ऊँ शं नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शं योरभिस्त्रवन्तु नः।
4) लघु मंत्र - ऊँ ऐं हृं श्रीशनैश्चराय नमः।
5) शिव मंत्र का पाठ करें - ऊँ तत्पुःषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो :द्र प्रचोदयात्।।
6) पौराणिक शनि मंत्र - ऊँ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
7) तांत्रिक शनि बीज मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं प्रों सः शनैश्चराय नमः।
8) ऊँ श्रां श्रीं श्रुं शनैश्चराय नमः।
9) ऊँ हलुशुं शनिदेवाय नमः।
10) ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चराय नमः।
11) ऊँ मन्दाय नमः।
12) ऊँ सूर्य पुत्राय नमः।
13) ध्वजिनी धामिनी कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन पुमान।
दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।
14) भो शनिदेव चन्दनं दिव्यं गन्धादय सुमनोहरम्।
विलेपन छायात्मजः चन्दनं प्रति गृहयन्ताम्।।
15) ऊँ शनिदेव नमस्तेस्तु गृहाण कःणा कर।
अर्घ्य च फलं सन्युक्तं गन्धमाल्याक्षतै युतम्।।
16) भो शनिदेव सरसों तैल वासित स्निगधता।
हेतु तुभ्यं-प्रतिगृहयन्ताम्।।
17) ऊँ सर्वतीर्थ समूदभूतं पाद्यं गन्धदिभिर्यतुम्।
अनिष्ट हŸार् गृहाणेदं भगवन शनि देवताः।।
19) सुर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालक्षः शिवप्रियः।
दीर्घचारः प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु में शनि।।
20) ऊँ भगभवाय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोदयात्।।
21)
नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते।
नमस्ते विष्णु रुपया क्रुष्णाय च नमोस्तुते।।
नमस्ते रौद्र देहाय नमस्ते चांतकायच।
नमस्तेयम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।।
नमस्ते मंद संज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते।
प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।
22) दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें -
दशरथकृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण् निभाय च।
नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्रय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥
नमः पुष्कलगात्रय स्थूलरोम्णेऽथ वै नमः।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुख्रर्नरीक्ष्याय वै नमः ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टेः नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सि विद्याधरोरगाः ।
त्वया विलोकिताः सर्वे नाशंयान्ति समूलतः॥9॥
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः ॥10॥
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23) ब्राम्हण पुराण शनि कवच का पाठ करें -
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान् ।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।1।।
श्रृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ।।2।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ।।3।।
ऊँ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः ।
नेत्रे छायात्मजः पातु कर्णो यमानुजः ।।4।।
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुजः ।।5।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः ।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता ।।6।।
नाभिं गृहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा ।
ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा ।।7।।
पदौ मन्दगतिः पातु सर्वांग पातु पिप्पलः ।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः ।।8।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः ।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यजः ।।9।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोपि वा ।
कलत्रस्थो गतोवापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ।।10।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ।।11।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः ।।12।।
24) शनि चालिसा का पाठ करें -
श्री शनि चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवनए मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुःख दूर करि ए कीजै नाथ निहाल ॥1॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु ए सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय ए राखहु जन की लाज ॥2॥
जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजाए तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवन चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
पिंगलए कृष्णोए छायाए नन्दन । यमए कोणस्थए रौद्रए दुःख भंजन ॥
सौरीए मन्द शनी दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं । रंकहुं राव करैं क्षण माहीं ॥
पर्वतहू तृण होइ निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
वनहुं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ॥
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ॥
रावण की गति.मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों । तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी.मीन कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । पारवती को सती कराई ॥
तनिक विकलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गतो गौरिसुत सीसा ॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रोपदी होति उधारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो । युद्ध महाभारत करि डारयो ॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देव.लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिह आदि नख धारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिह सिद्ध्कर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ॥
तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव कोए की हों श्भक्तश् तैयार ।
करत पाठ चालीस दिनए हो भवसागर पार ॥
॥इति श्री शनि चालीसा॥
शनिदेव की आरती करें -
।। श्री शनिदेव जी की आरती ।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हिकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हिकारी ।
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नालाम्बर धार नाथ गज की अवसारी ।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हिकारी ।
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हिकारी ।
मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हिकारी ।
दे दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हिकारी ।
शनिदेव के पूजन में इन सामग्री का प्रयोग किया जाता है -
ऽ काला तिल
ऽ सरसों का तेल
ऽ काला कपड़ा
ऽ तिल का तेल
ऽ काली चना दाल
ऽ काली मिर्च
ऽ लॉन्ग
ऽ तूलसी
ऽ काला नमक
ऽ लोहा
ऽ गुड़
ऽ पान का पŸा
ऽ सुपाड़ी
व्यक्ति के राशि में शनिदेव का प्रभाव तीन तरह से होता है -
1) शनि की ढैया। - शुक्रवार की रात्री में 800 ग्राम काले तिल पानी में भिंगो कर पीस कर उसमें गुड़ मिलाकर लड्डु बनाएं तथा किसी काले घोडे़ को खिला दें।
2) शनि की साढे साती। - काले घोडे़ के नाल का रिंग बनाकर उसे किसी पंडित से अभिमंत्रित करा कर मध्यमा अंगुली में धारण करें।
3) शनि की महादशा - शनि की ढैया तथा साढे साती तथा महादशा के अवधि में निम्न उपाय किये जा सकते हैं-
1) भगवान शिव की आराधना करें (महामृत्युंजय मंत्र का जाप 108
बार करें यदि संभव न हो तो कम से कम 21 बार जःर करें)
2) हनुमान मंदिर में हर शरिवार को सुन्दरकाण्ड का पाठ करें।
3) नित्य प्रातः एवं संध्या काल में हनुमान चालिसा का पाठ करें।
4) नित्य बजरंगबाण का पाठ करें।
5) नित्य ऊँ हुं हनुमते :द्रात्मकाय हुं फ्ट। का पाठ 108 बार करें।
6) किसी योग्य ज्योतिषि को दिखाकर नीलम धारण करें।
7) किसी योग्य ज्योतिषि की सलाह लेकर शनि यंत्र धारण करें।
8) हर चीज जैसे कपड़ा, चादर इत्यादि यथासंभव नीले रंग का प्रयोग करें।
9) शनि की दशा में लोहे, लौह से संबंधित, तेल, काली मिर्च, काले चने, रबड़, पेट्रोल इत्यादि का व्यापार अधिक फायदेमंद होगा।
10) काला सूरमा तथा काजल को जमीन में दबा दें। काला कुŸा एवं काली गाय को रोटी में सरसों तेल चुपड़ कर खिलायें।
11) शनिवार को सरसों तेल का तिलक लगायें।
12) मांस, मछली, अंडे, मदिरा इत्यादि का सेवन न करें तथा परस्त्री गलत नजर न डालें।
13) कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलावें।
14) लोहा, काला तिल, काला उड़द, काला सरसों, गुड़ आदि का दान करें।
15) शमी के वृक्ष में नित्य जल अर्पण करें तथा शमी के जड़ को किसी विद्वान पंडित से अभिमंत्रित कराकर धारण करें।
लाल किताब के अनुसार किए जाने वाले उपाय -
1) लाल कपड़े में कुछ सोने चाँदी के सिक्के बाँधकर आनाज के वर्तन
में डाल दें (धन का कभी भी अभाव नही रहेगा।)
2) काले तिल को परिवार के सभी सदस्य पर नियोच्छा कर उŸार
दिशा में फेंक दें। (धन की हानि नहीं होगी)
3) सभी कमरों में मोर का पंख लगायें। (आर्थिक स्थिति ठीक होगी)
4) सफेद झंडा पीपल के वृक्ष पर लगायें। (अकस्मात धन की प्राप्ति होगी।)
5) 21 शुक्रवार को 5 कन्याओं को भोजन करावें। ( आर्थिक स्थिति में सुधार होगा)
6) अपने घर और व्यापार स्थान पर एक्युरियम रखें उसमें 9 गोल्डेन तथा 1 काली मछली पालें। (धन का आगमन होगा)
7) ताँबे के पात्र में लाल चन्दन युक्त आधा जल भरकर सिरहाने में रखें तथा सुबह तुलसी के वृक्ष को अर्पण करें (खास परेशानी दूर होगी।
8) पाँच नारियल लेकर भगवान शिव की शिवलिंग के समक्ष रखकर पूजा करें एवं ऊँ श्रीं वर प्रदाय श्री नामः का पाठ 108 बार करें (कन्या के विवाह में उत्पन्न बाधाएँ दूर होगी)
9) थोड़ा सा अरवा चावल लेकर जायें और जिस कोर्ट में मुकदमा उसके दरवाजे के बाहर फेंक दें। (मुकदमें में जीत होगी)
10) नित्य हनुमान चालीसा का पाठ करें एवं शनिवार के दिन शनिदेव को तेल अर्पण करें (मानसिक परेशानी दुर होगी)
11) कांसे के कटोरी में सरसों तेल रख कर उसमें अपनी छवि देखें तथा उसे शनि मंदिर में दान करें इसे छायादान कहते है।
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