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शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

Nitya Karma Puja Padhati

दैनिक पूजा कर्म पद्धति
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                 कलियुग में व्यक्ति के बहुआयामी व्यक्तित्व होने के कारण व्यक्ति का जीवन अत्यंत व्यस्त हो गया हैै, जिससे जीवन कष्टमय होता जा रहा है। जीवन को सुखमय बनाने के लिए हमारी संस्कृति, हमारे जीवन और कर्म के लिए कुछ धार्मिक सिद्धांत स्थापित किया गया है। हमारे जीवन में कुछ पल ऐसे आतें है जब हमारा मन शुद्ध और सात्विक रहता है उस समय में किये गये कर्म का फल निष्फल नहीं जाता है और कर्म का प्रभाव पूण्यवर्धक होते हैं। जिस प्रकार दवा नियमित और समय पर लेने से व्यक्ति निरोग हो जाता है और मनमाने ढंग से सेवन करने पर तो उपयुक्त लाभ नहीं मिल पाता है। उसी प्रकार मंत्रो का पाठ भी समय के अनुसार संरचना की गयी है। वर्तमान परिपेक्ष में यह कहना उचित होगा कि हम प्रतिदिन 24 घंटे में विभिन्न तरह के काम-क्रोध, लोभ-मोह, राग-द्वेष इत्यादि दूर्गुणों के वषीभूत रहते हैं। यदि 24 घंटे में एक घंटे का समय धर्म-कर्म के लिए किया जाय निश्चित रूप से इस शुभ कर्म का पुण्य अवश्य प्राप्त होगा। सबसे पहले हमें अपने शरीर, आत्मा, मन और इद्रियों की शुद्धि की आवश्यकता होगाी। 

जब सुर्य की अरूणिमा अपने लालित्य के साथ गगन और पृथ्वी के बीच में उदय होते हैं वस्तुतः हमारा कर्म उसी समय सुरू होता है। वस्तुतः वैदिक, सनातन धर्मशास्त्र ही मानव के लिए श्रेष्ठ है अतः इसी के अनुसार मानव को अपने कर्म करने चाहिए। गीता में कहा गया है ‘‘स्वकर्मणा तमभ्यच्र्य सिद्धिं विन्दति मानवः’’ हमारे सनातन धर्म में प्रातः काल से लेकर शयन के समय तक के विभिन्न मंत्र की रचना की गयी है। ये सारे कर्म धर्म शास्त्र के अनुसार होना चाहिए। ‘‘जायमानो वै ब्राह्मणस्त्रिभिर्ऋणवा जायते’’ कोई शिशु जब जन्म लेता है तो उस पर तीन तरह के ऋण होते हैं - देव-ऋण, पितृ-ऋण और गुरू-ऋण, जो व्यक्ति धर्मशास्त्रसम्मत, नित्यकर्म और श्रद्धा के साथ जीवन भर कर्म करते हुए जीवन व्यतीत करते है उन्हें इन तीनों ऋणों से मुक्ति मिलती है। 


‘‘अथोच्यते गृहस्थस्य नित्यकर्म यथाविधि।
यत्कृत्वानृण्यमाप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मनुषात्।।’’

जब हम प्रातः काल नींद से जगते हैं तो जगने के बाद विस्तर पर ही हमें हमें अपने दोनो हाथ आँखों के सामने रख कर इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
‘‘कराग्रे वस्ते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती।
क्र मूले तु गोविंदम, प्रभाते कर दर्षनम।।’’

कर दर्षन के पश्चात् हमें तीनो देवों के साथ नवग्रह से निवेदन करना चाहिए कि यह दिन मेरे लिए शुभ हो -

‘‘ब्रह्म मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरूश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।’’

जब विस्तर से नीचे उतरते है तो सबसे पहले अपना दाहिना पैर भूमि पर रखना चाहिए फिर बायाँ पैर लेकिन पैर भूमि पर रखने से पहले पृथ्वी माता का अभिनन्दन करना चाहिए।

‘‘समुद्रवसने देवी   पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व में।।

इस मंत्र के मंत्रोचार के बाद अपने गुरू तथा सूर्य को नमस्कार करें। अपने हाथ, पैर और चेहरे को धो कर कुल्ला करें तथा थोड़ा सा जल अपने उपर छिड़ककर निम्न मंत्र का उच्चारण करें।

‘‘ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽ पि वा।
यः स्ममरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
अतनीलघनष्यामं   नलिनायतलोचनम्।
स्मरामि  पुण्डरीकाक्षं  तेन  स्नातो भवाम्यहम्।।’’

स्नान करते समय जल में अपनी उंगली से त्रिकोण बनायें तत्पशत नहाने से पहले इस मंत्र का पठन करें -

‘‘गंगे यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम कुरू।।’’

स्नान करने के बाद सबसे पहले सुर्य देव को जल चढाना चाहिए। सूर्यदेव की आराधना करने से पहले 11 बार माता गायत्री मंत्र से करना चाहिए उसके बाद सुर्य भगवान का मंत्र पढना चाहिए।

‘‘ऊँ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्’’

‘‘ऊँ भास्कराय विùहे, महातेजाय धीमहि 
तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्’’

‘‘ऊँ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युश्च
आदित्याय नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।

‘‘दीर्घमार्युबलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् 
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।’’

‘‘ऊँ मित्राय नमः’’

‘‘ऊँ रवये नमः’’

‘‘ऊँ सूर्याय नमः’’

‘‘ऊँ भानवे नमः’’

‘‘ऊँ खगाय नमः’’

‘‘ऊँ पूष्णे नमः’’

‘‘ऊँ हिरणगर्भाय नमः’’

‘‘ऊँ मरीचये नमः’’

‘‘ऊँ आदित्याय नमः’’

‘‘ऊँ सवित्रे नमः’’

‘‘ऊँ अर्काय नमः’’

‘‘ऊँ भास्कराय नमः’’

‘‘ऊँ रवये नमः

‘‘ऊँ श्री सवितृ सर्यनारायणाय नमः’’

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्करः

दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोस्तु ते।।’’

व्यक्ति के रीर का पोषण भोजन से प्राप्त होता है तथा रीर के सभी अंग भोजन से उर्जा प्रप्त कर अपना कार्य सम्पादित करते हैं। यदि भोजन के समय इन मंत्रों का उच्चारण करते है तथा अपने हाथ के पाँचो उंगलियों से भोजन करते है तो पंच तत्व गुण हमारे भोजन को और गुणकारी बनाते है और हमारा शरीर अधिक उर्जावान होता है। 

‘‘ऊँ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वार्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।।’’
‘‘ऊँ शान्तिः शान्तिः शन्तिः।।

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे। 
ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिखां देहि च पार्वति।।

ब्रह्मार्पणं ब्रह्माहविर्ब्रह्माग्न्नौ ब्रह्मणा हुतम।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।।

भोजन के बाद इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए -

‘‘अगस्तम कुम्भकर्णम च शनिं च बडवानलनम।
भोजनं परिपाकारथ स्मरेत भीमं च पंचमं।।’’

‘‘अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।

विद्यार्थियों को अध्ययन के समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इससे माता सरस्वती आवाहन होता है तथा उनका आर्शिवाद भी प्राप्त होता है -

‘‘ऊँ श्री सरस्वती शुक्लावर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचन्द्रप्रभामुष्टपष्श्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।

संध्या काल में व्यक्ति को संध्या वंदन करना चाहिए ऐसा वेदों में कहा गया है। 

‘ऊँ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।’’

स्ंाध्याकाल में घर में, पूजा के स्थान पर तथा तुलसी वृक्ष के नीचे दीप प्रज्वलित करना चाहिए तथा इस मंत्र को पढना चाहिए इससे जीवन में कल्याण होता है, धन में बृद्धि होती है और शत्रु का विनाश होता है,  -

‘‘शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोस्तु ते।।’’

‘‘सायं ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु में पापं संध्यादीप नमोस्तु ते।।’’

‘‘शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदाम्।
मम बुद्धिप्रकाषं च दीपज्योतिर्यस्तु ते।।’’

सोने के समय इस मंत्र का पाठ करें इससे सभी तरह के भय का विना होता है तथा यह आपके लिए बहुत लाभदायक होगा। 

‘‘अच्युतं केशवं विश्णंु हरिं सोमं जनार्दनम्।
हसं नारायणं कृष्णं जपते दुःस्वप्रशान्तये।।’’

आशा करता हुँ कि इन मंत्रों का प्रयोग करने से आप के जीवन में खुशहाली, समृद्धि तथा हरेक प्रकार के दोषों का निवारण हो सकेगा और आप स्वस्थ्य जीवन-यापन करने मे सक्षम हो सकंेगे। ईश्वर की अनुकम्पा सदा आप पर बनी रहे यही कामना करता हुँ। सर्वथा मेरा यह प्रयास रहेगा कि विभिन्न तरह के पठन मंत्र सामग्री  का संकलन कर आपके समक्ष प्रस्तुत करता रहुँगा। यह ज्ञान पथिक ब्लाॅग का संकल्प है कि भारतवर्श के जनमानस तक यह पहुँचाने का प्रयास सदैव करता रहुँगा। इसमें आपका सहयोग अपेक्षित है।
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