लोक आस्था का महापर्व छठ
भारतवर्ष में लोक आस्था का पर्व छठ को सूर्यदेवता को माहापर्व के रूप में मनाया जाता है। छठ पूजा हिन्दू धर्म मे मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण लोकपर्व है जो चैत्र माह में एवं कार्तिक महीने में मनाया जाता है। ऐसा कहावत है कि उगते हुए सूर्य को सभी प्रणाम करते है लेकिन भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ इस दिन भक्त अस्ताचलगामी सूर्य की भी पूजा करते हैं। चैत्र के षष्ठी को मनाया जाने वाले छठ को चैती छठ कहा जाता है। हिन्दु धर्म में ऐसी मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देवता की बहन है और उन्ही को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देवता की पूजा की जाती है। यह पर्व हिन्दू धर्म में श्रद्धा, आस्था एवं पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। नौ ग्रहों में सूर्य देवता सबसे अग्रणी, प्रमुख एवं प्रभावी ग्रह है। यह पर्व मुख्य रूप से सूर्य देवता की आराधना का पर्व है। इस पर्व में सूर्यदेवता को धन्यवाद ज्ञापन दिया जाता है क्योंकि सूर्य देवता के विना पृथवी पर जीवन की कल्पना नही किया जा सकता है।
छठ पर्व का इतिहास
छठ पर्व की सुरूआत कैसे हुइ इसके पीछे कई ऐतिहासिक किवदंतीयाँ प्रचलित हैं। पुराण में ऐसा कहा गया है कि राजा प्रियंवद पुत्र की कामना से यज्ञ कराकर खीर अपनी पत्नी को खाने के लिए दिया उससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन वह बालक मृत था राजा पुत्रवियोग में प्राण त्यागने को आतुर थे तभी मानस पुत्री देवसेना प्रकट होकर सृष्टि के मूल प्रवर्तक माता छठ के व्रत के साथ उनकी पूजा के लिए प्ररित किया । ऐसा भी कहा जाता है कि सूर्य पुत्र राजा कर्ण ने सूर्य की पूजा की थी। भगवान राम को जब वनवास हुआ था तो राता और माता सीता ने भी छठ व्रत किया था। पाण्डु पूत्र जब वनवास काल में थे तो उन्होंने भी छठ का व्रत किया था, और उन सभी की खोया हुआ राज-पाट वापस पाने की आराधना सफल हुई। छठ व्रत का माहात्म्य ऋग्वेद में भी बखान किया गया है।
छठ व्रत
यह पूजा चार चरणों में की जाती है
नहाय-खाय
पहले दिन नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। इसमें पूरे घर की साफ-सफाई की जाती है और पवनैति शाकाहारी भोजन से व्रत सुरूआत करती है
लोहंडा और खरना
नहाय-खाय के दूसरे दिन पवनैति (छठ वर्ति) पूरे दिन व्रत रखती है तथा संध्या काल माता छठ के पूजन के बाद में भोजन करती है इसे खरना कहा जाता है। इसमें गुड़ से बने खीर तथा घी वाली रोटी का भोग लगाया जाता है। नमक पूर्णतया वर्जित होता है। सचमुच छठी माँ इतनी कोमल आत्मा की होती है कि इस भोग से भी वह अति प्रसन्न हो जाती है चाहे वह गरीब हो या अमीर सभी व्यक्ति इस दिन ही प्रसाद चढातें हैं।
संध्या अघ्र्य
संध्या अर्घ के दिन पवनैति (छठ वर्ति) किसी तालाब या नदी के पानी खडे होकर सूर्य देवता को अघ्र्य देती है एवं गेंहु के आटे का ठेकुआ, चावल का लड्डु, तथा जो भी मौसमी फल और सब्जी होता है वो माता को अर्पण करती है इसमें प्रयुक्त होनेवाले प्रसाद अति सुलभ होते हैं। मकसद यही है कि चाहे गरीब हो या अमीर सभी को इस पूजा का फल सुगमता से उपलब्ध हो सके।
उगते सूर्य को अघ्र्य
संध्या अघ्र्य के उपरांत प्रातः काल उगतें हुए सूर्य को किसी तालाब या नदी के पानी खडे होकर अघ्र्य देती है तदुपरांत हवन किया जाता है इस पूजा में भी संध्या काल में चढाये जाने वाला भोग चढाया जाता है तथा पूजा की प्रक्रिया भी उसी तरह किया जाता है।
छठ व्रत करने वाले जातक को निम्न सावधानियाँ बरतनी चाहिए -
1) छठ माता को अघ्र्य देने वक्त वर्ती के हाथ में गन्ना होना चाहिए।
2) प्रसाद में गेंहु के आटे से बने ठेकुआ, फल एवं चावल के लड्डु से भोग लगाना चाहिए।
3) इस व्रत के दरम्यांन चारों दिन व्रर्ती को नवीन वस्त्र जिसमें सिलाई न हो धारण करना चाहिए।
4) व्रत के चारो दिन व्रर्ती को जमीन पर शयन करना चाहिए।
5) व्रत के दौरान प्याज, लहसुन इत्यादि वर्जित है।
6) व्रत के समस्त कार्य एवं भोग के लिए बांस के बने टोकरे को प्रयोग में लाना है।
7) वस्त्रों में गेरूए वस्त्र का धारण सर्वोत्तम माना गया है।
इस पर्व में छठ-व्रती छठ के लोग-गीत से माता छठ एवं सूर्य देवता को प्रसन्न करतीं है। गीत इतने लुभावन होतंे हैं कि सारा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। यह गीत प्रकृति, फूल फल, जीव जन्तु तथा पशु पक्षियों को भी शामिल करते हुए एक ऐसा संगीत होता है जो हर किसी को मंत्र-मुग्ध कर देता है। सारा वातावरण भक्तिमय एवं आधात्मिक सुगंध से सारे जगत को प्रफुल्लित कर देता है। इनमें पहले पहल छठी मइया............, कांचही बांस के बहंगिया..........., उगअ हो सुरूजदेव................इत्यादि काफी मशहूर तथा लोकप्रिय गीत हैं जो इस अवसर पर गाये जाते हैं !
छठ पूजा करने की विधि
प्रातः काल उठकर शुद्ध होकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए -
ऊँ खखोल्काय स्वाहा।
इसके बाद लाल फूल, लाल वस्त्र एवं रक्त चंदन अर्पण करे और इस मंत्र का पाठ करंे।
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर मनोस्तु ते।।
सप्ताश्चरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्ममज्म।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यम्।।
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यम्।।
बृंहितं तेजरूपुजं च वायु माकाशमेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम्।’
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजरू प्रदीपनम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
तं सूर्य जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणामाम्यहम्।।
इसके बाद अपने सुर्य देवता को अपनी मनोकामना बतायें।
छठ घाट पर पर अघ्र्य देते हुए निम्न मंत्र का जाप करें -
ऊं मित्राय नम: !
ऊं रवये नम: !
ऊं सूर्याय नम: !
ऊं भानवे नम: !
ऊं पुष्णे नम: !
ऊं मारिचाये नम: !
ऊं आदित्याय नम: !
ऊं भाष्कराय नम: !
ऊं आर्काय नम: !
ऊं खगये नम: !
अलग-अलग नामों से अघ्र्य देने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है। सूर्च देवता को निम्न मंत्र से भी अघ्र्य दिया जाना चाहिए -
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते । अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।
सूर्य की उपासना आघ्यात्मिक, मानसिक और शारिरिक शक्ति को बढाने का कारक तथा विकारों को दूर करने वाले होते है। पूजन के समय निम्न मंत्र का पाठ करना चाहिए इससे नेत्र रोग, पीलिया तथा हृदय रोग से निवारण होता है -
ऊँ सूर्याय नम:
ऊँ आदित्याय नम:
ऊँ भाष्कराय नम:
शत्रु नाशाय ऊँ हृीं हृीं सूर्याय नमः
ऊँ घृणिः सूर्य आदिव्योम
ऊँ हृां हृीं सः सूर्याय नमः
प्रसाद चढाने वक्त निम्न मंत्र का पाठ करें -
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं द्य अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् !
छठ पूजा के दरम्यांन कुछ ऐसे टोटके हैं जिन्हें करने से व्यक्ति को अपार सफलता एवं विशिष्ट मनोकामना पुर्ण होती है -
1) जिस जातक के कुण्डली में सूर्य की स्थिति नीच हो तो उस जातक को छठ पूजन के दरम्यांन सूर्य यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करना चाहिए। इससे जातक का सूर्य दोष कम होता है। ऐसे जातक को छठ में प्रातःकाल गंगाजल एवं गाय के दूध से अभिषेक करना चाहिए एवं
का उच्चारण करना चाहिए।
ॐ घृणि सूर्याय नमः
का उच्चारण करना चाहिए।
2) छठ पूजा में वस्त्र, अन्न इत्यादि का दान अति फलदायी होता है।
3) छठ पूजा के दरम्यांन तांबे सिक्का या चैकोर जल में प्रवाहित करने से सूर्य दोष का निवारण होता है।
छठ पूजा के दरम्यांन अगर पुत्र प्राप्ति की कामना रखते है तो निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए -
ऊँ भास्कराय पुत्रं देहि महातेजसे। धीमहि तन्नः सूर्य प्रचोदयात्।।
सूर्य देवता को अघ्र्य देते समय निम्न मंत्र का भी पाठ किया जा सकता है इस मंत्र का पाठ अति शुभ फलदायी माना गया है।
इसी के साथ मै आप से विदा लेता हूँ और कामना करतें हैं कि छठ माँ एवं सूर्य देव आपके घर में खुशियों की बरसात करें एवं समस्त वैभव एवं धन-धान्य से आपका घर भरा रहेगा।
मंदिर की घंटीए आरती की थालीए नदी के किनारेए सूरज की लालीए ज़िन्दगी में आयेए खुशियों की खबरए मुबारक हो आपकोए छठ पूजा की शुभकामनाये
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