सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

आज की फिल्में एवं दूरदर्शन विद्यार्थियों में अपराध भावना को बढावा दे रही है।

आज की फिल्में एवं दूरदर्शन विद्यार्थियों में अपराध भावना को बढावा दे रही है।
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             अपने जनक विज्ञान तथा अपनी जननी कला के संरक्षण में लालित-पालित तथा संरक्षित यह लाड़ला ‘‘चलचित्र’’ एवं ‘‘दूरदर्शन’’ आज ‘‘पंचम वेद’’ की आत्मा का सौंदर्य बनकर हमारे दिल और दिमाग दोनों पर छा गया है। इसे हम कला की भावगत सुन्दरता तथा विज्ञान की बुद्विगत वरेण्यता की क्रीड़ा का आँगन कह सकते है। एक ओर यह हमारी सास्वत भाव-सम्पदा का चलित और सुरक्षित कोष है तो दूसरी ओर यह हमारी बुद्विगत उपलब्धियों का सजा सजाया बाजार भी। फिल्मों एवं दूरदर्शन के प्रांगण में भावों की रससिद्धि कली अपनी नवमुस्कान छटा विखेरती है तो बुद्धि की चकाचैंध-मयी उपलब्धियाँ भी विराजती है।

               समस्यासंकुल युग में फिल्मों की लोकप्रियता जग जाहिर है। शहर का कोना-कोना तथा गाँव की गली-गली इसके महिमा-गीत के अह्लादक स्वरों में अनुगुंजित हो रही है। इस र्वज्ञानिक युग में शायद ही कोई हतभागा इन्सान होगा जिसने इस कालजयी माहातत्व के दर्शन न किये हों। आज शायद ही ऐसी कोई जगह होगी जहाँ सिनेमा के गीतों रसमय फुहार ने लोगोें के कर्ण-कुहर में अमृत का वर्षण न किया हो।

         नायक-नायिका चुम्बन का ललित व्यापार, पिकी की तरह अभिनेत्रियों की मृदु-मस्त पागल पुकार, प्रकृतिरानी के तरह सजे-सजाये रूप का श्रृंगार भला किसके मन और प्राण में उल्लास तथा मस्ती नहीं विखेर देंगे। भला इस मादक वातावरण में किसकी कमनीय लालसा इसके नण्य और भव्य परिवेश में लिपट कर उन्मत्त नही हो उठेगी ? दिवा-स्वपनों के रंग महल खड़ा करने वाले, अपूरनीय योजनाओं के शीशमहल उठाने वाले एवं कलित-ललित कल्पनाओं के हवाई महल बनानेवाले विद्यार्थी वर्ग अगर इसके शिकार हो ही गये तो इसमें आश्चर्य ही क्या ?

               आज जितनी भी फिल्में या धारावाहिक बनती है उनमें अधिकांश फिल्में और धारावाहिक का निर्माण मनोरंजन करने के उद्देश्या से ही किया जाता है। धूर्त फिल्म निर्माता और निर्देशक मनोरंजन प्रदान करने के संदर्भ में बिल्कुल सस्ती, घटिया तथा बाजारू मनोवृति का विवरण देते हैं। मनोरंजन का साधन जुटाने के लिए वे गन्दे-गन्दे अश्लील दृश्यों का अंकन, तथाकथित प्रेम-रस-सिक्त गीतों का चयन और नायिकाओं के कायिक नग्न सौंदर्य का प्रस्तुतीकरण कर फूले नहीं समाते। नतीजा यह होता है कि इन फिल्मों तथा धारावाहिकों के दर्शक स्थूल रूप में मनोरंजन का साधन पाकर भले ही हर्षातिरेक में झूमते हों, लेकिन भीतर अनैतिकता का विष किट इस तरह चलता रहता है कि उनका चरित्र, उसकी मनोवृति, उनके सारे कार्य-कलाप सब कुछ अस्वाभाविक हो जाते हंै।

                आज की ये फिल्में और धारावाहिकें विद्यार्थियों में अपराध भावना को बढावा दे रही है। विद्यार्थी-समाज इन फिल्मों के चलते बहुविध अनैतिक बिमारियों के भीषण शिकार हो गये हैं। इन फिल्मों के संपर्क में आने के कारण वे ऐसे भ्रष्ट और अनैतिक हो गये हैं कि उसका कोई ठिकाना नहीं। आज काॅलेजों में छात्रावासों में सड़कों पर विद्यार्थियों द्वारा उनके आचार-विचार का जो भी कलुषित और कलंकित रूप हमें देखने को मिलता है, उसका सारा श्रेय हमारी फिल्मांे तथा धारावाहिकों का है। उनकी फैशनपरस्ती, कामुकता, अनुशासनहीनता तथा झूठे प्रदर्शन की प्रवृति को जन्म देने का एकमात्र श्रेय इन फिल्मों तथा धरावाहिकों का है। आज की फिल्में तथा धारावाहिक वासना को उदृदीप्त करनेवाली तथा अपराध वृति को प्रोत्साहित करनेवाली है जिससे विद्यार्थियों का चारित्रिकवल क्षीण होता जा रहा है और सामाज में नैतिकता का पक्ष दुर्वल पड़ गया है।
                  ‘‘काँटा लगा हाय रब्बा ...........................’’ का सड़ाध युक्त ध्वनि और दृश्य अब विद्यालयों, महाविद्यालयों की कक्षाओं में खुले आम हो रहा है। वर्णमाला की जानकारी के पुर्व ही ‘‘ कमरिया करे लपालप .........लाॅलीपाॅप लागेलू......... ’’ का राग आज का बच्चा सस्वर स्मरण कर गया है। राम, कृष्ण, सुभाष, गाँधी और लक्ष्मीबाई का नाम वह भले ही न जान पाये पर ऋितिक, सलमान, साहरूख, आमीर, अक्षय, शीबा, सन्नी लियोन आदि को वह भली भाँति पहचानता है। आज का छात्र एक ओर शक्ति कपूर, मनीष बहल से सफल खलनायक बनने का तरीका सीख रहा है तो दूसरी तरफ छात्राएँ प्रियंका चोपड़ा, कैटरीना और निगार खान से प्रभावित होकर ग्लैमर और पाकिटमारी की।

                  अतः यह निर्विवाद रूप से शत प्रतिशत सत्यता के साथ, डंके की चोट पर कहा जायेगा कि आज की फिल्में एवं धारावाहिकें ही विद्यार्थियों में अपराध भावना को बढाावा दे रही है।



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Ajay Kumar Thakur
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29 टिप्‍पणियां:

  1. Aapka subject bilkul aaz ke situation ko darshata hai

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  2. Film Producer and Television Producer ko is blog ko padhna chahiye

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  3. सचमुच ये फिल्म वाले इस तरह की दृश्य दिखाकर दिग्भ्रमित करते हैं

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  4. आज के परिवेश में बिलकुल सही लिखा है

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