सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

Society is responsible for Indiscipline among students


विद्यार्थियों में बढती अनुशासनहीनता के लिए समाज उततरदायी है।
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चिर प्रतीक्षित स्वतंत्रता की कनक किरणांे के अभिनन्दन के बाद हमने उन आलोक-रश्मियों में अपनी रूग्णता के जिन असंख्य कीट-कृमियों को देखा है उनमें ‘‘विद्यार्थियों में बढती अनुसाशनहीनता’’ का विष-कीट बड़ा ही घातक है। आज हमारा राजनीतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन इस विषधर भुजंग के काले साये में पड़कर हर तरह से मलिन, कलंकित और अभिशप्त हो गया है। आज ऐसा लग रहा है कि सम्पूर्ण विद्यार्थी वर्ग विप्लव की ज्वालामुखी के मुख पर बैठा बस एक विस्फोटक की राह देख रहा हो।

सम्पूर्ण वातावरण इनके कोलाहल, नारेबाजी, मशाल-जुलूस, तोड़-फोड़, हड़ताल, घेराव, परीक्षाओं के बहिष्कार इत्यादि कार्याे से अशान्त और आन्दोलित है। रेल में, बस में, प्रशस्त राजपथ या संकीर्ण गलियों में, बडे़-बडे़ नगरों के सजे-सजाये बाजारों में या गाँव की सूनी पगडंडियों पर सभी जगह विद्यार्थी वर्ग के आक्रोश के लक्षण न्यूनाधिक रूप में विराजमान है। नेता और अविभावक, शिक्षक और परीक्षक, माता और पिता सभी छात्रोें के इस आंदोलन और अनुशासनहीनता से चिंताकुल है, सभी के सामने शांति, प्रेम, सदभावना और सहयोग के एतिहासिक अस्तित्व की स्थापना का एक लम्बा चौड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह लटक रहा है। अब तो ऐसा लगने लगा है कि शासन-यंत्र के नियंत्रण से परे होकर विद्याथियों में बढती अनुशासनहीनता दिन-प्रतिदिन उग्र से उग्रतर होता चला जा रहा है और एक दिन ऐसी विस्फोटक स्थिति हो जायेगी कि हमारी उपलब्धियों की सारी मर्यादा क्षत-विक्षत हो जायेगी, हमारे आदर्श के खड़े मानदण्ड टूट-टूट कर विखर जायेंगे।

आचार्य रजनीश ने अपने भास्वर स्वर में विद्यार्थियों में बढती अनुशासनहीनता के लिए समाज को उŸारदायी बताया है- ‘‘ यह पीढी प्रेम की भूखी है। इन्होने अपने चारों ओर झूठ-फरेब का जाल देखा है और ये क्रमशः उपद्रव अपनाते जाते हैं। जिस पीढी को स्नेह-सद्भाव मिला ही नही उससे स्नेह-सद्भाव की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। ये छूरेबाजी करते हैं, लड़कियों पे एसिड फेंकते हैं, कॉलेज में आग लगाते हैं ............तुम्हारा कोई शिक्षक, तुम्हारे कोई घर्म गुरू उन्हें नहीं समझा सकेंगे।’’

एक ओर यदि सामाज का उपांग परिवार, अपने परिवारिक नियंत्रण के अभाव में विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता का बीज वपण कर रहा है तो दूसरी ओर दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति तथा भ्रष्ट राजनीति की विषाक्त हवा इसे पल्लवित और पुष्पित कर रहा है।

बढते परिवार, बढती मँहगी, बढती बहुविध समस्याओं एवं उलझनों के कारण अविभावकगण अपने-अपने परिवार के विद्यार्थियों पर अपेक्षित नियंत्रण नहीं कर पाते। फलतः उनका आक्रोश अपने-अपने अविभावकों के प्रति भीतर-भीतर सुलगता रहता है; जिसका विस्फोट वे साथियों के साथ मिलने पर रेल, बस, स्कूल, कॉलेज और अन्य जगहों में करते हैं। 

आज की दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति हमारे सामाज की देन है। स्वतंत्रता के पश्चात हमारी शिक्षा पद्धति को विल्कुल परिष्कृत और परिमार्जित होने की आवश्यकता थी जो देश के लिए आदर्श नागरिक, कुशल कार्य कर्Ÿाा एवं गौरव मंडित सेनानी उत्पन्न करता और हर विद्यार्थी को सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक क्षेत्र में सम्मान की जिन्दगी बसर करने के लिए अपेक्षित अवसर प्रदान करता परन्तु वर्तमान शिक्षा ने विद्यार्थियो को हर तरह से अयोग्य और चरित्रहीन बना दिया है। इस शिक्षा ने ही अह्लाद की जगह अवसाद, हर्ष की जगह विषाद और उल्लास की जगह गम की सूचना देनेवाली सर्वाधिक कलुषित और भयावह बेकारी की समस्या उत्पन्न कर विद्यार्थी वर्ग को अति अनुशासनहीन बना दिया है।

राजनीति दहकते अंगारों की प्रज्वलित शिखा नही, वह तो सुरभित सुमनो की सुगन्ध-सुवासित माला है लेकिन आज के तथाकथित कुछ पद लोलुप और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों ने राजनीति के इस पवित्र प्रांगण को छल-छद्म का अखाड़ा बना दिया है, कमनीय कुसमांे के इस हार को सर्प की माला बना दिया है और गलित-दलित दो कौड़ी की बाजारू और बासी राजनीति के पंक में धकेल कर उनके पाक दामन को कलूषित और कलंकित कर दिया है।

विद्यार्थियों में बढती अनुशासनहीनता के लिए समान रूप से जिम्मेदार शिक्षाविद, समाजिक-कार्यकर्Ÿाा, राजनीतिज्ञ, अविभावक, शिक्षक एवं प्रशासक हैं जो इस समाज के ही शसक्त एवं प्रबुद्ध वर्ग कहे जाते हैं। अतः स्पष्टरूपेण यह कहा ही जायेगा कि विद्यार्थियों में बढती अनूशासनहीनता कि लिए एकमात्र समाज ही उŸारदायी है।

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Ajay Kumar Thakur
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21 टिप्‍पणियां:

  1. Aapne Achha likha hai main is vichar se sahmat hoon

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  2. बहुत अच्छा विषय पर आपने लिखा है सचमुच आज का समाज इसके लिए उत्तरदायी है

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  3. ऐसा लगता है की विद्यार्थी वर्ग सचमुच ज्वाला के मुख पर बैठे हैं

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