विष्णु सहस्रनाम
शास्त्रों में विष्णु को पालन अर्थात जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले देव के रूप में परिभाषित किया गया है। अर्थात चाहे वह मनुष्य के विद्या ग्रहण की बात हो या फिर विवाह की। विवाह के पश्चात संतान प्राप्ति की बात हो या फिर संतान की उन्नति की, हर कार्य में भगवान विष्णु की कृपा के बगैर सफलता नहीं मिल सकती। भगवान विष्णु को बृहस्पति या गुरु भी कहा गया है। नक्षत्र विज्ञान में बृहस्पति को सबसे बड़ा ग्रह बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र में तो कन्या के विवाह का कारक ग्रह बृहस्पति को ही माना गया है।
महाकाव्य महाभारत के अनुशासन पर्व नामक अध्याय में भगवान विष्णु के एक हजार नामों का उल्लेख है। कहा जाता है कि जब भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे अपनी इच्छा मृत्यु के काल चयन की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब उन्होंने ये एक हजार नाम युधिष्ठिर को बताये थे। तथ्य यह है कि ज्ञान अर्जन की अभिलाषा में जब युधिष्ठिर ने भीष्मपितामह से यह पूछा कि
"मेकम दैवतम लोके! किम वाप्येकम परयणम!"
अर्थात कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है! तो पितामह ने अपने संवाद में भगवान विष्णु के इस एक हजार नामों का उल्लेख किया और कहा कि प्रत्येक युग में सभी अभीष्ठ की प्राप्ति के लिये, इन एक हजार नामों का श्रवण और पठन सबसे उत्तम होगा। विष्णु सहस्रनाम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हिन्दू धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है।
विष्णु सहस्रनाम में विष्णु को शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र के नाम से सम्बोधित किया है, जो इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि शिव और विष्णु एक ही है। आदि शंकराचार्य ने भी इस बात की पुष्टि की है। पाराशर भट्टर ने विष्णु को शिव के नाम से सम्बोधित किये जाने को विशेषण बताया है, अर्थात शिव रूपी शाश्वत सत्य को विष्णु के पर्यायवाची के रूप में व्यक्त किया गया है। विष्णु सहस्रनाम के आधार पर कैवल्य उपनिषद में विष्णु को ब्रह्मा और शिव का स्वरूप बताया गया है।
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