मंगलवार, 29 मई 2018

ज्योतिष चिकित्सा विज्ञान


ज्योतिष रत्न विज्ञान


कुंडली में शिक्षा योग


ज्योतिष चन्द्र कुण्डली


विल्वाष्टकम


कुंडली में धन भाव


कुंडली में मंगल का प्रभाव


जन्म कुंडली का मिलान कैसे करें?


सामूहिक अनुष्ठान क्या है ?


ग्रहों की उच्च एवं नीच राशि


शनि की साढेसाती


राहु और केतु के दुर्योग


पाप करतरी दोष


मेष लग्न वालों के मित्र और शत्रु ग्रह।


सोमवार, 14 मई 2018

पूजा, पाठए यज्ञ, अनुष्ठान से फल प्राप्त नहीं होने के कारण


पूजा, पाठए यज्ञ, अनुष्ठान से फल प्राप्त नहीं होने के कारण
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बहुत सारे लोगों का यह कहना होता है की उनको पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान से फल प्राप्त नहीं  होते और इन सब विधियों का कोई महत्व नहीं है।  अगर किसी को ऐसा लगता है तो इस का जरूर कोई कारण होना चाहिए।  पूजा,  पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान से फल प्राप्त नहीं होने के  एक नहीं बल्कि अनेक कारण हैं, लेकिन अगर सरलता से समझें तो हमारे जीवन जीने   का ढंग ही इसका प्रमुख कारण है। आइये समझते हैं इस समस्या के कुछ प्रमुख कारण। 

जब हम किसी देवी देवता की पूजा करते हैं तो उनके द्वारा हमारी  कामना पूर्ती के लिए आशीर्वाद दिया जाता है लेकिन यह आशीर्वाद कुछ लोगों को मिलता है और कुछ लोगों को नहीं मिलता। आशीर्वाद नहीं मिलने का कारण हमारे द्वारा किये जाने वाले कर्म ही हैं। नीचे कुछ प्रश्न दिए जा रहे हैं। आप इनका उत्तर सोच कर स्वयं ही समझ जायेंगे की अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है तो आपको क्या परिवर्तन करना है। 

१  क्या आप अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए अमावस्या का दान करते हैं ?

२ क्या आप अपने माता ;चंद्र द्ध और पिता ;सूर्य द्ध की देख भाल करते हैं ?

३ क्या आपके सम्बन्ध अपने भाई, चाचा, मामा, बहनोई (मंगल) के साथ         अच्छे हैं ?
४ क्या आपके सम्बन्ध अपनी बहन, बुआ, मासी, चाची, भाभी (बुध)           के साथ अच्छे हैं ?
५ क्या आप अपने पति ( बृहस्पति) का ख्याल रखती हैं ?

६ क्या आप अपनी पत्नी (शुक्र) का ख्याल रखते हैं ?

७ क्या आप महिलाओं (शुक्र) का सम्मान करते हैं ?

८ क्या आप अपने नीचे काम करने वालों (शनि) को उचित पैसा और सम्मान देते हैं ?

८ क्या आपका व्यवहार सफाई कर्मचारियों (राहु) के साथ ठीक है ?

९ क्या आप कुत्तों (केतु) की सेवा करते हैं ?

अगर इन प्रश्नों में ज्यादा के उत्तर नहीं हैं तो पूजा पाठ के फल प्राप्ति में मुश्किलें आएँगी। जरूरत है अपने जीवन जीने के ढंग को बदलने का। 



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विष्णु सहस्रनाम

विष्णु सहस्रनाम

शास्त्रों में विष्णु को पालन अर्थात जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले देव के रूप में परिभाषित किया गया है। अर्थात चाहे वह मनुष्य के विद्या ग्रहण की बात हो या फिर विवाह की। विवाह के पश्चात संतान प्राप्ति की बात हो या फिर संतान की उन्नति की, हर कार्य में भगवान विष्णु की कृपा के बगैर सफलता नहीं मिल सकती। भगवान विष्णु को बृहस्पति या गुरु भी कहा गया है। नक्षत्र विज्ञान में बृहस्पति को सबसे बड़ा ग्रह बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र में तो कन्या के विवाह का कारक ग्रह बृहस्पति को ही माना गया है।

महाकाव्य महाभारत के अनुशासन पर्व नामक अध्याय में भगवान विष्णु के एक हजार नामों का उल्लेख है। कहा जाता है कि जब भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे अपनी इच्छा मृत्यु के काल चयन की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब उन्होंने ये एक हजार नाम युधिष्ठिर को बताये थे। तथ्य यह है कि ज्ञान अर्जन की अभिलाषा में जब युधिष्ठिर ने भीष्मपितामह से यह पूछा कि 

"मेकम दैवतम लोके! किम वाप्येकम परयणम!" 

अर्थात कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है! तो पितामह ने अपने संवाद में भगवान विष्णु के इस एक हजार नामों का उल्लेख किया और कहा कि प्रत्येक युग में सभी अभीष्ठ की प्राप्ति के लिये, इन एक हजार नामों का श्रवण और पठन सबसे उत्तम होगा। विष्णु सहस्रनाम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हिन्दू धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है।

विष्णु सहस्रनाम में विष्णु को शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र के नाम से सम्बोधित किया है, जो इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि शिव और विष्णु एक ही है। आदि शंकराचार्य ने भी इस बात की पुष्टि की है। पाराशर भट्टर ने विष्णु को शिव के नाम से सम्बोधित किये जाने को विशेषण बताया है, अर्थात शिव रूपी शाश्वत सत्य को विष्णु के पर्यायवाची के रूप में व्यक्त किया गया है। विष्णु सहस्रनाम के आधार पर कैवल्य उपनिषद में विष्णु को ब्रह्मा और शिव का स्वरूप बताया गया है।


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क्या आपकी जन्म कुंडली में धन योग है


क्या आपकी जन्म कुंडली में धन योग है

आपकी जन्म कुंडली में धन योग है या नहीं यह जानने के लिए इस बात को समझना आवश्यक है कि धन योग बनता कैसे है। जन्म कुंडली का पहलाए दूसराए पांचवाए नवमा एवं ग्यारहवां भाव और उनके मालिक ग्रह धन योग का निर्माण करते हैं। 

यदि इन भावों के मालिक ग्रह अपने ही भाव में स्थित हों तो धन योग बनता है। यदि इन भावों के मालिक ग्रह एक दूसरे के भावों में स्थित हों तो धन योग बनता है एवं यदि इन भावों के दो या दो से अधिक  मालिक ग्रह किसी भी भाव में एक साथ स्थित हों तो धन योग बनता है।

एक व्यक्ति की जन्म कुंडली में एक से अधिक धन योग भी हो सकते हैं। अलग अलग धन योग की क्षमता भी अलग अलग होती है।

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महामृत्युंजय मंत्र के लाभ


महामृत्युंजय मंत्र के लाभ


शनि की साढ़ेसाती, अढय्या शनिए पनौती.पंचम शनिए राहु.केतु पीड़ाए भाई का वियोगए मृत्युतुल्य विविध कष्टए असाध्य रोगए त्रिदोषजन्य महारोगए अपमृत्युभय आदि अनिष्टकारी योगों में महामृत्युंजय प्रयोग रामबाण औषधि है।

मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा में सविधि मृत्युंजय जप,  रुद्राभिषेक एवं शिवार्जन से ग्रहजन्य एवं रोगजन्य अनिष्टकारी बाधाएँ शीघ्र नष्ट होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।


अभीष्ट सिद्धि, संतान प्राप्ति, राजपद प्राप्ति, चुनाव में विजयी होने, मान.सम्मान, धन लाभ, महामारी आदि विभिन्न उपद्रवों, असाध्य एवं त्रिदोषजन्य महारोगादि विभिन्न प्रयोजनों में सविधि प्रमाण सहित महामृत्युंजय जप से मनोकामना पूर्ण होती है।

विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है।देवता मंत्रों के अधीन होते हैं. 


" मंत्रधीनास्तु देवताः। "

मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है।

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सवार्थ कल्याणकारी है महादेव का रुद्राभिषेक


सवार्थ कल्याणकारी है महादेव का रुद्राभिषेक


भगवान शंकर कल्याणकारी हैं। उनकी पूजाए अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान सदाशिव का विभिन्न प्रकार से पूजन करने से विशिष्ठ लाभ की प्राप्ति होती हैं। यजुर्वेद में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यंत लाभप्रद माना गया हैं। लेकिन जो व्यक्ति इस पूर्ण विधि.विधान से पूजन को करने में असमर्थ हैं अथवा इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान सदाशिव के षडाक्षरी मंत्रं।  

"ॐ नमः शिवाय "

का जप करते हुए रुद्राभिषेक तथा शिव.पूजन कर सकते हैं, जो बिलकुल ही आसान है।



अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र.स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। शास्त्रों में भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है। 

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दुःखों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वतः हो जाती है।

रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है। वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है। पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है।

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जन्म कुंडली मिलान में जन्म लग्न कुंडली का महत्व

जन्म कुंडली मिलान में जन्म लग्न कुंडली का महत्व 


आमतौर से जन्म कुंडली मिलान का अर्थ गुण मिलान और मंगल दोष का सम्यक हो जाना समझा जाता है और इस प्रक्रिया में प्रस्तावित वर एवं वधू के व्यक्तिगत जन्म लग्न कुंडली को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। इसी कारण से जन्म कुंडली के मिलान के बाद भी विवाह के बाद आपसी मतभेद देखने को मिलता है और लोगों का भरोसा इस पूरी प्रक्रिया पर ही कम होता जा रहा है। जन्म कुंडली मिलान में सबसे महत्वपूर्ण बात व्यक्तिगत कुंडलीयों का सामंजस्य है जिसमें  चंद्रमा और शुक्र की स्थिति का मूल्यांकनए लग्नेश की मित्रता तथा सप्तम अष्टम एवं पंचम भाव का मूल्यांकन परम आवश्यक  है। 

गुण मिलान इस पूरी प्रक्रिया का बहुत ही छोटा हिस्सा है।              

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मंगल ग्रह का संक्षिप्त परिचय


मंगल ग्रह का संक्षिप्त परिचय 
                                         
सदा  उर्जावान सदा क्रोधी परस्त्री रत समस्त भोगों को भोगने वाला ग्रह है मंगल, ग्रहों की संसदं में इसको सेनापति का दर्जा प्राप्त है और सभी शौर्य और वीरता से सम्बंधित गतिविधियों में मंगल ही कहीं न कहीं से काम करता है !



मंगल का जन्म उज्जैयिनी में माना गया है तथा मंगल का मंत्र है -

" ॐ अं अंगारकाय नमः ! "

और इसको प्रतिदिन यदि संभव हो तो १००८ बार जपना चहिये अन्यथा १०८ बार तो अवश्य ही !

मंगल को २ राशियों का अधिपत्य प्राप्त है ! मेष और वृश्चिक, इसका रत्न मूंगा है और इसका रंग लाल है वैधव्य का हेतु भी मंगल ही है अगर ये जन्म कुंडली में १२,१,४,७, ८ भावों में हो और कहीं से इसका परिहार न हो रहा हो तो ये सबसे अमंगल ग्रह है ! मंगल प्रबल मारक होता है शस्त्र से मृत्यु देने में मंगल अग्रणी है, मंगल शौर्य भी है बेधड़क शत्रु के खेमे में जाकर सबको मटियामेट कर देने का साहस देने वाला ग्रह मंगल ही है सर पर चोट देने में भी मंगल को महारत हासिल है ! 

सड़क छाप गुंडे मवाली भी मंगल का ही रूप होते हैं और सड़क से सदन तक जाने वाले कई लोग मंगल प्रधान होते हैं मंगल से वाणी भी ख़राब होती है जिन स्त्रियों का मंगल द्वितीय भाव में हो और स्वराशी तथा शुभ द्रष्ट न हो उनको बहुत दिक्कत होती है, अगर मंगल कुंडली में अच्छा नहीं है तो आम तौर पे दिक्कत ही देता है और अगर अच्छा है तो व्यक्ति हर परिस्थिति से लड़कर आगे निकल जाता है !

मंगल अहंकार कूट कूट के भर देता है गीता में श्री कृष्ण ने स्पष्ट कहा है की अहंकार प्रभु प्राप्ति के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है मंगल प्रधान लोग बहुत भौतिकतावादी होते हैं,  मैंने कर रहा हूँ, मैंने करा,  मैं  ऐसा, मैं वैसा आत्म प्रशंसा सुन ने के भी ये लोग बहुत लालायित रहते हैं !

ख़राब मंगल को साधने के लिए हनुमानजी से अच्छा कोई नहीं है जिनका भी मंगल खराब हो मंगलवार को या जिस दिन चन्द्रमा मृगशिरा, चित्रा धनिष्ठा में हो तो १०८ या ५१ बार हनुमान चालीसा का पाठ करें और २७  बार उसी दिन या नक्षत्र में  पुनरावृत्ति करें !

वाहन से दुर्घटना, ओपरेशन, हाथ पैर टूटना, अंग-भंग होना सब मंगल की देन है अधिकतर सर पर चोट, टाँके लगना भी मंगल का ही काम है ! मंगल चिकित्सक भी बनाता है, सेना में भी भेजता है, पोलिस में भी, भूमि पुत्र है अतः भूमि से भी जुड़े हुई कामों में लगाता है जैसे बिल्डर, भूमि के दलाल, मंगल उद्योगपति भी बनाता है बड़ी बड़ी मशीनों का जहाँ पर काम होता है, वाहन के काम में भी लगा देता है !




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अमावस्या के दान का महत्व

अमावस्या के दान का महत्व 


मैंने अपने बारह वर्षों के ज्योतिषीय परामर्श के कार्य में जो सबसे महत्त्वपूर्ण अनुभव प्राप्त किया है वो यह है कि हमारी मुख्य समस्या हमारे जीवन में संतुलन का अभाव है।  प्रश्न यह है कि मैं यहाँ किस संतुलन की बात कर रहा हूँ।  मेरे देखे यह प्रतीत होता है कि हमारा जीवन जिन शक्तियों द्वारा संचालित होता है एहम उनमें समन्यवय नहीं कर पाते और किसी न किसी समस्या से पीड़ित होते रहते हैं।  

ये शक्तियां मुख्यतया तीन हैं : 

१ ईश्वर 

२ पितर ; हमारे कुल के पूर्वज 

३ जीवित माता पिता एवं आचार्य


हम में से सामान्यतया सभी लोग ईश्वर आराधना करते हैं परन्तु इसके बाद भी अधिकतम लोगों को वांछनीय फल प्राप्त नहीं होता ए इसका कारण वो पूर्वज हैं जिनकी हमने उपेछा की है।

ईश्वर के आशीर्वाद को फल रूप में प्राप्त करने के लिए पितरों की सेवा अत्यंत आवश्यक है।

इसका सबसे सरल उपाय है अमावस्या के दिन दान करना। अमावस्या का दिन पितरों के लिए ख़ास महत्व का है
प्रत्येक अमावस्या के दिन किसी भी मंदिर में या किसी गरीब ब्राह्मण को ये चीज़ें दान कर हम अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

ये सामग्री हैं : 

चावल एउड़द दाल एसरसों तेल,घी, चूड़ा, गुड़, आटा, रसगुल्ला, बैगन, आलू, उड़द की बड़ी, और दक्षिणा।



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जानकी गौ ग्रास योजना


जानकी गौ ग्रास योजना

वर्तमान समय में लगभग हर आदमी के जीवन में कोई न कोई परेशानी चल रही हैण् ऐसा कोई भी आदमी नहीं है जो की अपने जिन्दगी से पुरी तरह संतुष्ट हो और पुरी तरह से सुखी होण् शास्त्रों में हमारे जीवन से जुडी प्रत्येक छोटी बड़ी समस्या के निवारण बताया गया है! एक उपाय तो यही है की हम अपनी मेहनत और बुद्धि से इन् समस्याओं का समाधान करें और दूसरा तरीका यह है की हम धार्मिक कर्म करेंण् पूजापाठ करें !

हमारे जीवन में जितने भी सुख दुःख आते हैं वो सब हमारे द्वारा किये गए कर्मों के कारण ही आते हैं, यदि हम अच्छे कर्म करते हैं तो दुःख का समय जल्दी निकल जाता हैण् हमारे शस्त्रों में पांच जीव ऐसे बताये गए हैं की जिनको खाना खिलाने से हमारे जीवन में आने वाली सभी समस्या दूर हो जाती हैं व् जीवन में सुख शान्ति आती है ! 




इनमें सब से प्रमुख है गाय।गाय को रोटी या हरी घास खिलानी चाहिये, गाय को रोटी या हरी घास खिलाने से बहुत से चमत्कारिक फल मिलते हैं, व्यक्ति की कुंडली में जितने भी गृह दोष होते हैं वो सब शान्त हो जाते हैं, गाय को पूजनीय और पवित्र पशु माना जाता है, जो व्यक्ति गाय की सेवा करता है उसका जीवन सुख शान्ति से व्यतीत होता है और उसे जीवन में सभी सुख प्राप्त होते हैं !

जो कोई भी व्यक्ति गाय को ग्रास देना चाहते हैं और समय अभाव या किसी अन्य कारण से ऐसा नहीं कर पा रहे वह हमारे ज्योतिषीय कार्यालय में 500/- रुपया जमा करा कर जानकी गौ ग्रास योजना का हिस्सा बन सकते हैं और हम आपकी तरफ से महीने भर एक गाय को एक रोटी और गुड़ का ग्रास देते रहेंगे।



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पितृदोष


पितृदोष

कथित तौर पर मॉडर्न होती आजकल की जनरेशन का अध्यात्म से रिश्ता टूटता जा रहा है जिसके चलते वे सभी घटनाओं और परिस्थितियों को ज्ञान के आधार पर जांचने और परखने लगे हैं। वैसे तो इस बात में कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि ऐसा कर वे रूढ़ हो चुकी मानसिकता से किनारा करते जा हे हैं परंतु कभी.कभार कुछ घटनाएं और हालात ऐसे होते हैं जिनका जवाब  चाह कर भी विज्ञान नहीं दे पाता।

ये घटनाएं सीधे तौर पर ज्योतिष विद्या से जुड़ी है, जो अपने आप में एक विज्ञान होने के बावजूद युवापीढ़ी के लिए एक अंधविश्वास सा ही रह गया है। खैर आज हम आपको ज्योतिष विद्या में दर्ज पितृ दोष के विषय में बताने जा रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति की कुंडली को प्रभावित कर सकता है।

जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाएए या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की कुंडली में झलकता है।

पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैंए जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्याए विवाहित जीवन में कलह रहनाए परीक्षा में बार.बार असफल होनाए नशे का आदि हो जानाए नौकरी का ना लगना या छूट जानाए गर्भपात या गर्भधारण की समस्याए बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना।

पितृदोष के बहुत से ज्योतिषीय कारण भी हैं, जैसे जातक के लग्न और पंचम भाव में सूर्य, मंगल एवं शनि का होना और अष्टम या द्वादश भाव में बृहस्पति और राहु स्थित हो तो पितृदोष के कारण संतान होने में बाधा आती है।

अष्टमेश या द्वादशेश का संबंध सूर्य या ब्रहस्पति से हो तो व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित होता हैए इसके अलावा सूर्यए चंद्र और लग्नेश का राहु से संबंध होना भी पितृदोष दिखाता है। अगर व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु का संबंध पंचमेश के भाव या भावेश से हो तो पितृदोष की वजह से संतान नहीं हो पाती।

पितृ दोष को शांत करने के उपाय तो हैं लेकिन आस्था और आध्यात्मिक झुकाव की कमी के कारण लोग अपने साथ चल रही समस्याओं की जड़ तक ही नहीं पहुंच पाते।

अपने भोजन की थाली में से प्रतिदिन गाय और कुत्ते के लिए भोजन अवश्य निकालें और अपने कुलदेवी या देवता की पूजा अवश्य करते रहें। रविवार के दिन विशेषतौर पर गाय को गुड़ खिलाएं और जब स्वयं घर से बाहर निकलें तो गुड़ खाकर ही निकलें। संभव हो तो घर में भागवत का पाठ करवाएं।

हिन्दू धर्म में पूर्वजन्म और कर्मों का विशेष स्थान है। मौजूदा जन्म में किए गए कर्मों का हिसाब.किताब अगले जन्म में भोगना पड़ता है इसलिए बेहतर है कि अपने मन.वचन.कर्म से किसी को भी ठेस ना पहुंचाई जाए।




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वास्तु शास्त्र

वास्तु शास्त्र 

नैऋत्य :साउथ वेस्ट नैऋत्य में पृथ्वी तत्व तथा राहु ग्रह है। राहु महाराज का चिन्ह सांप का मुंह और उसी सांप की पूँछ को केतु कहते हैं। आपको यह जानकारी होगी की पृथ्वी शेषनाग पर स्थिर है। यह पृथ्वी तत्व राहु कोण में है। पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण होने से एपृथ्वी तत्व स्थिरता का प्रतीक है। वास्तु पुरुष के पैर पृथ्वी तत्व में आते हैं। यह कोना सदियों के लिए स्थिरता, पावर, दूरंदेशी एवं बुद्धिमत्ता देता है। वास्तु शास्त्र

नैऋत्य कोने में रसोई होने से : 
१. १५ साल के बाद स्त्री को गर्भासय की थैली निकालने का योग आएगा 
२. स्त्री हमेशा नेगेटिव विचार का प्रदर्शन करेगी 
३. स्त्री को पैर से ले कर कमर तक के दर्द की शियकत रहेगी 
४. पैसे की तकलीफ हमेशा रहेगी 
५. स्त्री का प्रभाव घर में सब से अधिक रहेगा 
६. घर में फूट डालने में सहायक है, एक ही घर में दो रसोई हो जाएगी।         
नैऋत्य कोण बढ़ने पर : 


दक्षिण दिशा की ओर बढ़ने से कानूनी कार्रवाई का कारक है। आपके जीवन में एक गलत व्यक्ति जरुर आएगा, चाहे वो गलत जमाई हो, गलत पार्टनर हो, गलत बहू हो, चाहे गलत मित्र  हो। ऐसा व्यक्ति जिन्हें न आप निगल सकें न उगल सकें।                       

पश्चिम दिशा की ओर बढ़ने से अधिक व्यय का कारक है। ऐसे घरों में पाँव दर्द की शिकायत हमेशा रहती है।        

नैऋत्य कोण कटने पर : 

पृथ्वी कोण कटा है तो वास्तु पुरुष के पैर कट जाते हैं जो वास्तु दोष है। इससे जीवन में अस्थिरता आती है। आपको हमेशा सहारे की जरूरत पड़ सकती है। पृथ्वी तत्व का कटा कोना अस्थिरता का और पैर में चोट लगने का संकेत होता है लेकिन कटा कोना इंसान को एक बार तो ऊंचाई पर ले जाता है और फिर अचानक गिराता है।                                                                    
नैऋत्य कोने के प्रवेश द्वार या मुख्य द्वार में रहने वाले लोगों की दुर्गति तय है। ऐसा मकान मुफ्त में भी नहीं लेना चाहिए।।



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दान का महत्व

                             दान का महत्व                                                             
हिंदू धर्म में दान का विशेष महत्व बताया गया है। अक्सर लोग अमावस्या और पूर्णिमा के दिन आटे.चावल का दान करते हैं लेकिन कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिनका दान विशेष रूप से फलदायी होता है। इसलिए दान के वक्त केवल और केवल इन्हीं चीजों का दान करना चाहिए।

भगवान शिव के शिव पुराण में दान के महत्व के बारे में बताया गया है और साथ ही बताए गए हैं इसके कुछ चमत्कारिक उपाय। 

शिवपुराण में दान के संबंध में कुछ ऐसी चीजें बताई गई हैं कि जिन्हें दान करने से हर प्रकार की मनोकामना पूरी होती है। लेकिन हर प्रकार की मनोकामना के लिए अलग प्रकार की चीजे दान करनी होती है।

शिवपुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बुरे समय की मार से गुजर रहा हो तो उसे नमक का दान करना चाहिए। इससे बुरा समय टल जाता है। 

घी का दान
शिवपुराण के अनुसार जो लोग शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त होते हैं उनके लिए घी का दान करना फायदेमंद रहता है।  

तिल का दान
शिवपुराण के अनुसार मृत्यु और भय पर विजय पाने के लिए व्यक्ति को तिल का दान करना चाहिए। इससे एक नए प्रकार की ऊर्जा भी मिलती है।

अनाज का दान
शिवपुराण के अनुसार अनाज का दान करने वाले के घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती। 

गुड़ का दान
शिवपुराण के अनुसार सभी दानों में गुड़ का दान करने सबसे अधिक लाभकारी साबित होता है। इससे मनचाहा भोजन भी प्राप्त होता 

आपकी जन्म कुंडली एक Balance Sheet है जिसमें आपके कर्मों का लेखा.जोखा है। इन के आधार पर ही आपका जीवन संचालित हो रहा है। अपने कर्मों को अच्छा करने से किसी भी समस्या का समाधान संभव है। दूसरों की मदद और दान एक बहुत ही प्रभावी प्रक्रिया है अपने जीवन को बेहतर बनाने का और साथ ही यह भी व्रत लें कि जान बूझकर किसी का नुकसान नहीं करेंगे और किसी को कष्ट नहीं देंगे। इतने से ही जीवन संवरने लगेगा।

जीवन की हर समस्या का समाधान शास्त्रों में बताया गया है। एक उपाय तो ये है कि हम अपनी मेहनत से और स्वयं की समझदारी से इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करें और दूसरा उपाय है धार्मिक कार्य करें। हमें प्राप्त होने वाले सुख.दुख हमारे कर्मों का प्रतिफल ही है। पुण्य कर्म किए जाए तो दुख का समय जल्दी निकल जाता है।

शास्त्रों के अनुसार गाय, पक्षी, कुत्ता, चींटियां और मछली से हमारे जीवन की सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से गाय को रोटी खिलाएं तो उसके ज्योतिषीय ग्रह दोष नष्ट हो जाते हैं। गाय को पूज्य और पवित्र माना जाता हैए इसी वजह से इसकी सेवा करने वाले व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं। इसी प्रकार पक्षियों को दाना डालने पर  आर्थिक मामलों में लाभ प्राप्त होता है। व्यवसाय करने वाले लोगों को विशेष रूप से प्रतिदिन पक्षियों को दाना अवश्य डालना चाहिए।

यदि कोई व्यक्ति दुश्मनों से परेशान हैं और उनका भय हमेशा ही सताता रहता है तो कुत्ते को रोटी खिलाना चाहिए। नियमित रूप से जो कुत्ते को रोटी खिलाते हैं उन्हें दुश्मनों का भय नहीं सताता है। कर्ज से परेशान से लोग चींटियों को शक्कर और आटे डालें। ऐसा करने पर कर्ज की समाप्ति जल्दी हो जाती है।

जिन लोगों की पुरानी संपत्ति उनके हाथ से निकल गई है या कई मूल्यवान वस्तु खो गई है तो ऐसे लोग यदि प्रतिदिन मछली को आटे की गोलियां खिलाते हैं तो उन्हें लाभ प्राप्त होता है। मछलियों को आटे की गोलियां देने पर पुरानी संपत्ति पुन: प्राप्त होने के योग बनते हैं।

इन पांचों को जो भी व्यक्ति खाना खिलाते हैं उनके सभी दुख.दर्द दूर हो जाते हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

गठिया,  स्पॉन्डिलाइटिसए  स्लिप  डिस्क,  माइग्रेनएडिप्रेशन,       लकवा,  ट्यूबरक्लोसिस,  साइटिका, दांत संबंधी बीमारी से बचने एवं इनके प्रभाव को कम करने के लिए शनिदेव के मंत्र का सवा लाख जप एवं दशांश हवन करना या करवाना अत्यंत लाभदायक होता है। शनिदेव के मंत्र का जाप सायं काल में किया जाता है। विशेष जानकारी एवं परामर्श के लिए संपर्क करें। 



संपर्क सूत्र :
शिशिर पाठक 
जन्म कुंडली एवं वास्तु विशेषज्ञ 
76, को - ऑपरेटिव कॉलोनी। 
बोकारो स्टील सिटी, Whatsapp - 09572807883
Visit my :  Gyan Pathik YouTube Channel


सामूहिक अनुष्ठान से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी

सामूहिक अनुष्ठान  से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी 




१ सामूहिक अनष्ठान क्या है ?


सामूहिक अनुष्ठान ऐसी शास्त्रीय व्यवस्था है जिसके द्वारा एक साथ किसी  एक अनुष्ठान में एक से ज्यादा व्यक्तियों का नाम शामिल कर उन सभी  को  एक साथ  लाभ पंहुचाया  जा सकता है।

२ सामूहिक एवं व्यक्तिगत अनुष्ठान के फल में क्या अंतर है ?


सामूहिक एवं व्यक्तिगत अनुष्ठान के फल में कोई अंतर नहीं है। दोनों ही अनुष्ठान में एक ही पद्धति अपनायी जाती है और फल देना भगवान् के हाथ में है और उनकी शक्ति और भण्डार अथाह है।

३ सामूहिक अनुष्ठान में क्या व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य है ?

सामूहिक अनुष्ठान में व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य नहीं  है। जो लोग उपस्थित होना चाहें वो संकल्प और हवन के समय उपस्थित हो सकते हैं।

४ सामूहिक अनुष्ठान की इस व्यवस्था में अभी कौन कौन से अनुष्ठान कराये जा रहे हैं ?


सामूहिक अनुष्ठान की इस व्यवस्था में अभी जो अनुष्ठान कराये जा रहे हैं उनमें प्रमुख हैं :

i     महामृत्युंजय जाप अनुष्ठान,

ii     रुद्रभिषेकम अनुष्ठान,

iii     हनुमान चालीसा पाठ अनुष्ठान,

iv    आदित्यहृदयस्तोत्र पाठ एवं हवन अनुष्ठान,

v    गणेशअथर्वशीर्ष  पाठ एवं हवन अनुष्ठान एवं,

vi     विष्णुसहस्रनाम हवन अनुष्ठान,

५ जन सामान्य के लिए इन अनुष्ठानों का क्या महत्व एवं उपयोग है ?
    
लेकिन अगर मात्र स्वास्थ्य की दृष्टि से भी देखें  तो : 

महामृत्युंजय अनुष्ठान से - आयु एवं आरोग्य,

रुद्रभिषेकम से  - किडनी एवं डिप्रेशन,

गणेशअथर्वशीर्ष से  - मिर्गी एवं वाणी सम्बन्धी,

हनुमान चालीसा से  - ऑपरेशन,  दुर्घटना एवं ब्लड सम्बन्धी, 

आदित्यहृद्यस्तोत्र से  - हार्ट एवं आँख  सम्बन्धी और 

विष्णुसहस्रनाम से  - लिवर सम्बन्धी  कष्ट को रोकने या कम करने में सहायता मिलती है। 


निवेदक :
शिशिर पाठक 
जन्म कुंडली एवं वास्तु विशेषज्ञ 
76, को - ऑपरेटिव कॉलोनी। 
बोकारो स्टील सिटी, Whatsapp - 09572807883
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शनिवार, 12 मई 2018

Ayachi Mishra a great Personality of Mithila


Ayachi Mishra a great Personality of Mithila

In the world, if there are only 8 great scholars considered to be the eighth wonder and amazing scholar, it is that Bhavanath Mishra, who is known as Ayachi. Ayachi is known as the great thinker of the famous Sanskrit scholar of Mithila. " Ayaachi " means the person who has never asked anyone for anything.

Ayachi Mishra was a very poor brahmin. He had his entire life dead, his land was a house of pallet on this land. His wife used to be content with this wealth. She used to cultivate greens on land and both of her family members were happy. Having spent all his life eating greens, but there is nowhere to go for some help from someone.

The scholar was in his rage and he could not imagine such a scholar, nor did he see that he was, although there is no concrete proof of his birth place, Sarisab-Pahi was a resident of Village, but some people are called Andhra-Thahi village of Darbhanga district of Mithilanchal, now known as Vachaspati Nagar. He was a great devotee of Lord Shiva and spent his time in worship and devotion. Besides all these one of them worried about the fact that they had no son. According to Hindu religion, the son is the only means of the expanse of a family and after the death ritual of father and his ancestors.

Ayachi Mishra, for many years, for his son, has done penance and worship of God Shiva. One day God Shiva appeared on his own and asked him to ask for boon. Bhawanath Mishra said to a son for a son. God shiva, seeing his fate, said that he did not have a son in his fate, so he decided to take birth as his own son. After an appropriate time, a wonderful child was born. The Child's name was Shankar. Ayachi had nothing to give her wages to care for Shankar's mother in her childhood (which is called chamain in mithilanchal) and she promised to give her first earning of child Shankar to that Dagarin (Midwife).

Child Shankar was a boon of Lord Shiva. From all his infancy, he was explicitly reciting the Sanskrit verses, all the scriptures, the Vedas, Purans in memory. Although there were many scholars in Mithilanchal, but Ayachi was the only one. The Philosophy of  Scholars' Land Mithilanchal was formed. Even today Bhawanath Mishra (Ayachi Mishra) sacrificed his life for the sacrifice pf sacrifice, idol, and his life.

Shankar Mishra, son of Ayachi Mishra writes that I have nothing in my compositions, all this is my father's knowledge. Bhavanath Mishra (Ayachi) has never composed any Book or Scripture. Shankar Mishra writes that all of my knowledge I have received from my father under the jugular gynecology. Child Shankar is compared to Adi Guru Shankaracharya of Kerala.

Once a conference of scholars was convened by Raj Darbhanga, in which Bhavanath Mishra had to go in there also, child Shankar also started insisting on going to that meeting. Therefore, the mother prepared him with decorated and he boarded the elephant with his father. Ayachi and went to Raj Darbhanga assembly. There the eclipse with father was assumed. In a while, the work started by scholars. One scholar used to question, the other gave him a reply, When some scholar used to question, child Shankar would lift his hand.  When he did this many times, Darbhanga Maharaj noticed that this child wants to say something. He raised the boy Shankar and asked him to hear something. Child Shankar gave him answer that " Apan banwal sunao ki pustak ke likhal" (his own written or written in Holy Book) people began to whisper in the gathering, people were saying that what this will speak is a child. That is when child Shankar started to say -

" Balo aham jagdananda, mame bala saraswati,
Apurne panchme varshe, Varenyam jagatrayam "

Upon hearing, Darbhanga Maharaj was very pleased and provided him with a diamond neckless form. The child Shankar came home with a neckless and gave it to his mother. Great child Shankar, who was himself the incarnation of Lord Shiva, his mother could not have been an ordinary mother. Although his mother was very poor but he was the mother of Shankar and wife of Ayachi. Therefore to his promise, he gave his child's first earning to the nurse, who was serving the childhood during the childbirth. There can be nothing greater than the value of the world and sacrifice of the world and it is impossible for a normal women. 

See amazing play of sacrifice he was not accepting the neck less and reached the door of the castle to return the king to give that up. the soldiers of the king considered him a thief and caught  him and presented him before the king. The King, after seeing that neckless  recognized that I had gifted it to child Shankar. That's when the nurse told the whole story. The king called Ayachi Mishra for varification. Knowing the reality, the king's mind became gaudgad and glorified that there are such honest, committed people residing in our state. That the nurse created many temples and ponds with that money. Even today, Basopatti has a small pond named Chamainiya Pokhar (Pond) which is the largest pond in that area.

This context teaches us the art of living life. It teaches us that it depends on ourselves that we are dependent on whatever means we have, and do not spread the hands to anyone. There is a massage of simplifying life for our future generations. Do not spread hands in front of anyone in any opposite situation. Use your time in earning knowledge, follow your world. Ultimately, we can say that the value of physical objects is negligible in front of the truth.

I am proud that Darbhanga is my birthplace, we have the character of Ayachi Mishra, Shankar Mishra and his wife, devoted to the word, philosophy, sacrifice, the genre of living life. I bow to them peacefully.

By : Ajay Kumar Thakur

मिथुन राशि वालों के लिए मित्र और शत्रु ग्रह !

मेष राशि नमस्कार दोस्तों, आज से सभी 12 राशियों की जानकारी देने के लिए   एक श्रृंखला सुरू करने जा रही हैं जिसमे हर दिन एक एक राशि के बारे में...