सोमवार, 14 मई 2018

महामृत्युंजय मंत्र के लाभ


महामृत्युंजय मंत्र के लाभ


शनि की साढ़ेसाती, अढय्या शनिए पनौती.पंचम शनिए राहु.केतु पीड़ाए भाई का वियोगए मृत्युतुल्य विविध कष्टए असाध्य रोगए त्रिदोषजन्य महारोगए अपमृत्युभय आदि अनिष्टकारी योगों में महामृत्युंजय प्रयोग रामबाण औषधि है।

मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा में सविधि मृत्युंजय जप,  रुद्राभिषेक एवं शिवार्जन से ग्रहजन्य एवं रोगजन्य अनिष्टकारी बाधाएँ शीघ्र नष्ट होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।


अभीष्ट सिद्धि, संतान प्राप्ति, राजपद प्राप्ति, चुनाव में विजयी होने, मान.सम्मान, धन लाभ, महामारी आदि विभिन्न उपद्रवों, असाध्य एवं त्रिदोषजन्य महारोगादि विभिन्न प्रयोजनों में सविधि प्रमाण सहित महामृत्युंजय जप से मनोकामना पूर्ण होती है।

विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है।देवता मंत्रों के अधीन होते हैं. 


" मंत्रधीनास्तु देवताः। "

मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है।

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जन्म कुंडली एवं वास्तु विशेषज्ञ 
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सवार्थ कल्याणकारी है महादेव का रुद्राभिषेक


सवार्थ कल्याणकारी है महादेव का रुद्राभिषेक


भगवान शंकर कल्याणकारी हैं। उनकी पूजाए अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान सदाशिव का विभिन्न प्रकार से पूजन करने से विशिष्ठ लाभ की प्राप्ति होती हैं। यजुर्वेद में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यंत लाभप्रद माना गया हैं। लेकिन जो व्यक्ति इस पूर्ण विधि.विधान से पूजन को करने में असमर्थ हैं अथवा इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान सदाशिव के षडाक्षरी मंत्रं।  

"ॐ नमः शिवाय "

का जप करते हुए रुद्राभिषेक तथा शिव.पूजन कर सकते हैं, जो बिलकुल ही आसान है।



अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र.स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। शास्त्रों में भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है। 

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दुःखों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वतः हो जाती है।

रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है। वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है। पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है।

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जन्म कुंडली मिलान में जन्म लग्न कुंडली का महत्व

जन्म कुंडली मिलान में जन्म लग्न कुंडली का महत्व 


आमतौर से जन्म कुंडली मिलान का अर्थ गुण मिलान और मंगल दोष का सम्यक हो जाना समझा जाता है और इस प्रक्रिया में प्रस्तावित वर एवं वधू के व्यक्तिगत जन्म लग्न कुंडली को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। इसी कारण से जन्म कुंडली के मिलान के बाद भी विवाह के बाद आपसी मतभेद देखने को मिलता है और लोगों का भरोसा इस पूरी प्रक्रिया पर ही कम होता जा रहा है। जन्म कुंडली मिलान में सबसे महत्वपूर्ण बात व्यक्तिगत कुंडलीयों का सामंजस्य है जिसमें  चंद्रमा और शुक्र की स्थिति का मूल्यांकनए लग्नेश की मित्रता तथा सप्तम अष्टम एवं पंचम भाव का मूल्यांकन परम आवश्यक  है। 

गुण मिलान इस पूरी प्रक्रिया का बहुत ही छोटा हिस्सा है।              

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मंगल ग्रह का संक्षिप्त परिचय


मंगल ग्रह का संक्षिप्त परिचय 
                                         
सदा  उर्जावान सदा क्रोधी परस्त्री रत समस्त भोगों को भोगने वाला ग्रह है मंगल, ग्रहों की संसदं में इसको सेनापति का दर्जा प्राप्त है और सभी शौर्य और वीरता से सम्बंधित गतिविधियों में मंगल ही कहीं न कहीं से काम करता है !



मंगल का जन्म उज्जैयिनी में माना गया है तथा मंगल का मंत्र है -

" ॐ अं अंगारकाय नमः ! "

और इसको प्रतिदिन यदि संभव हो तो १००८ बार जपना चहिये अन्यथा १०८ बार तो अवश्य ही !

मंगल को २ राशियों का अधिपत्य प्राप्त है ! मेष और वृश्चिक, इसका रत्न मूंगा है और इसका रंग लाल है वैधव्य का हेतु भी मंगल ही है अगर ये जन्म कुंडली में १२,१,४,७, ८ भावों में हो और कहीं से इसका परिहार न हो रहा हो तो ये सबसे अमंगल ग्रह है ! मंगल प्रबल मारक होता है शस्त्र से मृत्यु देने में मंगल अग्रणी है, मंगल शौर्य भी है बेधड़क शत्रु के खेमे में जाकर सबको मटियामेट कर देने का साहस देने वाला ग्रह मंगल ही है सर पर चोट देने में भी मंगल को महारत हासिल है ! 

सड़क छाप गुंडे मवाली भी मंगल का ही रूप होते हैं और सड़क से सदन तक जाने वाले कई लोग मंगल प्रधान होते हैं मंगल से वाणी भी ख़राब होती है जिन स्त्रियों का मंगल द्वितीय भाव में हो और स्वराशी तथा शुभ द्रष्ट न हो उनको बहुत दिक्कत होती है, अगर मंगल कुंडली में अच्छा नहीं है तो आम तौर पे दिक्कत ही देता है और अगर अच्छा है तो व्यक्ति हर परिस्थिति से लड़कर आगे निकल जाता है !

मंगल अहंकार कूट कूट के भर देता है गीता में श्री कृष्ण ने स्पष्ट कहा है की अहंकार प्रभु प्राप्ति के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है मंगल प्रधान लोग बहुत भौतिकतावादी होते हैं,  मैंने कर रहा हूँ, मैंने करा,  मैं  ऐसा, मैं वैसा आत्म प्रशंसा सुन ने के भी ये लोग बहुत लालायित रहते हैं !

ख़राब मंगल को साधने के लिए हनुमानजी से अच्छा कोई नहीं है जिनका भी मंगल खराब हो मंगलवार को या जिस दिन चन्द्रमा मृगशिरा, चित्रा धनिष्ठा में हो तो १०८ या ५१ बार हनुमान चालीसा का पाठ करें और २७  बार उसी दिन या नक्षत्र में  पुनरावृत्ति करें !

वाहन से दुर्घटना, ओपरेशन, हाथ पैर टूटना, अंग-भंग होना सब मंगल की देन है अधिकतर सर पर चोट, टाँके लगना भी मंगल का ही काम है ! मंगल चिकित्सक भी बनाता है, सेना में भी भेजता है, पोलिस में भी, भूमि पुत्र है अतः भूमि से भी जुड़े हुई कामों में लगाता है जैसे बिल्डर, भूमि के दलाल, मंगल उद्योगपति भी बनाता है बड़ी बड़ी मशीनों का जहाँ पर काम होता है, वाहन के काम में भी लगा देता है !




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अमावस्या के दान का महत्व

अमावस्या के दान का महत्व 


मैंने अपने बारह वर्षों के ज्योतिषीय परामर्श के कार्य में जो सबसे महत्त्वपूर्ण अनुभव प्राप्त किया है वो यह है कि हमारी मुख्य समस्या हमारे जीवन में संतुलन का अभाव है।  प्रश्न यह है कि मैं यहाँ किस संतुलन की बात कर रहा हूँ।  मेरे देखे यह प्रतीत होता है कि हमारा जीवन जिन शक्तियों द्वारा संचालित होता है एहम उनमें समन्यवय नहीं कर पाते और किसी न किसी समस्या से पीड़ित होते रहते हैं।  

ये शक्तियां मुख्यतया तीन हैं : 

१ ईश्वर 

२ पितर ; हमारे कुल के पूर्वज 

३ जीवित माता पिता एवं आचार्य


हम में से सामान्यतया सभी लोग ईश्वर आराधना करते हैं परन्तु इसके बाद भी अधिकतम लोगों को वांछनीय फल प्राप्त नहीं होता ए इसका कारण वो पूर्वज हैं जिनकी हमने उपेछा की है।

ईश्वर के आशीर्वाद को फल रूप में प्राप्त करने के लिए पितरों की सेवा अत्यंत आवश्यक है।

इसका सबसे सरल उपाय है अमावस्या के दिन दान करना। अमावस्या का दिन पितरों के लिए ख़ास महत्व का है
प्रत्येक अमावस्या के दिन किसी भी मंदिर में या किसी गरीब ब्राह्मण को ये चीज़ें दान कर हम अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

ये सामग्री हैं : 

चावल एउड़द दाल एसरसों तेल,घी, चूड़ा, गुड़, आटा, रसगुल्ला, बैगन, आलू, उड़द की बड़ी, और दक्षिणा।



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जानकी गौ ग्रास योजना


जानकी गौ ग्रास योजना

वर्तमान समय में लगभग हर आदमी के जीवन में कोई न कोई परेशानी चल रही हैण् ऐसा कोई भी आदमी नहीं है जो की अपने जिन्दगी से पुरी तरह संतुष्ट हो और पुरी तरह से सुखी होण् शास्त्रों में हमारे जीवन से जुडी प्रत्येक छोटी बड़ी समस्या के निवारण बताया गया है! एक उपाय तो यही है की हम अपनी मेहनत और बुद्धि से इन् समस्याओं का समाधान करें और दूसरा तरीका यह है की हम धार्मिक कर्म करेंण् पूजापाठ करें !

हमारे जीवन में जितने भी सुख दुःख आते हैं वो सब हमारे द्वारा किये गए कर्मों के कारण ही आते हैं, यदि हम अच्छे कर्म करते हैं तो दुःख का समय जल्दी निकल जाता हैण् हमारे शस्त्रों में पांच जीव ऐसे बताये गए हैं की जिनको खाना खिलाने से हमारे जीवन में आने वाली सभी समस्या दूर हो जाती हैं व् जीवन में सुख शान्ति आती है ! 




इनमें सब से प्रमुख है गाय।गाय को रोटी या हरी घास खिलानी चाहिये, गाय को रोटी या हरी घास खिलाने से बहुत से चमत्कारिक फल मिलते हैं, व्यक्ति की कुंडली में जितने भी गृह दोष होते हैं वो सब शान्त हो जाते हैं, गाय को पूजनीय और पवित्र पशु माना जाता है, जो व्यक्ति गाय की सेवा करता है उसका जीवन सुख शान्ति से व्यतीत होता है और उसे जीवन में सभी सुख प्राप्त होते हैं !

जो कोई भी व्यक्ति गाय को ग्रास देना चाहते हैं और समय अभाव या किसी अन्य कारण से ऐसा नहीं कर पा रहे वह हमारे ज्योतिषीय कार्यालय में 500/- रुपया जमा करा कर जानकी गौ ग्रास योजना का हिस्सा बन सकते हैं और हम आपकी तरफ से महीने भर एक गाय को एक रोटी और गुड़ का ग्रास देते रहेंगे।



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पितृदोष


पितृदोष

कथित तौर पर मॉडर्न होती आजकल की जनरेशन का अध्यात्म से रिश्ता टूटता जा रहा है जिसके चलते वे सभी घटनाओं और परिस्थितियों को ज्ञान के आधार पर जांचने और परखने लगे हैं। वैसे तो इस बात में कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि ऐसा कर वे रूढ़ हो चुकी मानसिकता से किनारा करते जा हे हैं परंतु कभी.कभार कुछ घटनाएं और हालात ऐसे होते हैं जिनका जवाब  चाह कर भी विज्ञान नहीं दे पाता।

ये घटनाएं सीधे तौर पर ज्योतिष विद्या से जुड़ी है, जो अपने आप में एक विज्ञान होने के बावजूद युवापीढ़ी के लिए एक अंधविश्वास सा ही रह गया है। खैर आज हम आपको ज्योतिष विद्या में दर्ज पितृ दोष के विषय में बताने जा रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति की कुंडली को प्रभावित कर सकता है।

जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाएए या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की कुंडली में झलकता है।

पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैंए जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्याए विवाहित जीवन में कलह रहनाए परीक्षा में बार.बार असफल होनाए नशे का आदि हो जानाए नौकरी का ना लगना या छूट जानाए गर्भपात या गर्भधारण की समस्याए बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना।

पितृदोष के बहुत से ज्योतिषीय कारण भी हैं, जैसे जातक के लग्न और पंचम भाव में सूर्य, मंगल एवं शनि का होना और अष्टम या द्वादश भाव में बृहस्पति और राहु स्थित हो तो पितृदोष के कारण संतान होने में बाधा आती है।

अष्टमेश या द्वादशेश का संबंध सूर्य या ब्रहस्पति से हो तो व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित होता हैए इसके अलावा सूर्यए चंद्र और लग्नेश का राहु से संबंध होना भी पितृदोष दिखाता है। अगर व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु का संबंध पंचमेश के भाव या भावेश से हो तो पितृदोष की वजह से संतान नहीं हो पाती।

पितृ दोष को शांत करने के उपाय तो हैं लेकिन आस्था और आध्यात्मिक झुकाव की कमी के कारण लोग अपने साथ चल रही समस्याओं की जड़ तक ही नहीं पहुंच पाते।

अपने भोजन की थाली में से प्रतिदिन गाय और कुत्ते के लिए भोजन अवश्य निकालें और अपने कुलदेवी या देवता की पूजा अवश्य करते रहें। रविवार के दिन विशेषतौर पर गाय को गुड़ खिलाएं और जब स्वयं घर से बाहर निकलें तो गुड़ खाकर ही निकलें। संभव हो तो घर में भागवत का पाठ करवाएं।

हिन्दू धर्म में पूर्वजन्म और कर्मों का विशेष स्थान है। मौजूदा जन्म में किए गए कर्मों का हिसाब.किताब अगले जन्म में भोगना पड़ता है इसलिए बेहतर है कि अपने मन.वचन.कर्म से किसी को भी ठेस ना पहुंचाई जाए।




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मिथुन राशि वालों के लिए मित्र और शत्रु ग्रह !

मेष राशि नमस्कार दोस्तों, आज से सभी 12 राशियों की जानकारी देने के लिए   एक श्रृंखला सुरू करने जा रही हैं जिसमे हर दिन एक एक राशि के बारे में...