सोमवार, 14 मई 2018

पूजा, पाठए यज्ञ, अनुष्ठान से फल प्राप्त नहीं होने के कारण


पूजा, पाठए यज्ञ, अनुष्ठान से फल प्राप्त नहीं होने के कारण
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बहुत सारे लोगों का यह कहना होता है की उनको पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान से फल प्राप्त नहीं  होते और इन सब विधियों का कोई महत्व नहीं है।  अगर किसी को ऐसा लगता है तो इस का जरूर कोई कारण होना चाहिए।  पूजा,  पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान से फल प्राप्त नहीं होने के  एक नहीं बल्कि अनेक कारण हैं, लेकिन अगर सरलता से समझें तो हमारे जीवन जीने   का ढंग ही इसका प्रमुख कारण है। आइये समझते हैं इस समस्या के कुछ प्रमुख कारण। 

जब हम किसी देवी देवता की पूजा करते हैं तो उनके द्वारा हमारी  कामना पूर्ती के लिए आशीर्वाद दिया जाता है लेकिन यह आशीर्वाद कुछ लोगों को मिलता है और कुछ लोगों को नहीं मिलता। आशीर्वाद नहीं मिलने का कारण हमारे द्वारा किये जाने वाले कर्म ही हैं। नीचे कुछ प्रश्न दिए जा रहे हैं। आप इनका उत्तर सोच कर स्वयं ही समझ जायेंगे की अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है तो आपको क्या परिवर्तन करना है। 

१  क्या आप अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए अमावस्या का दान करते हैं ?

२ क्या आप अपने माता ;चंद्र द्ध और पिता ;सूर्य द्ध की देख भाल करते हैं ?

३ क्या आपके सम्बन्ध अपने भाई, चाचा, मामा, बहनोई (मंगल) के साथ         अच्छे हैं ?
४ क्या आपके सम्बन्ध अपनी बहन, बुआ, मासी, चाची, भाभी (बुध)           के साथ अच्छे हैं ?
५ क्या आप अपने पति ( बृहस्पति) का ख्याल रखती हैं ?

६ क्या आप अपनी पत्नी (शुक्र) का ख्याल रखते हैं ?

७ क्या आप महिलाओं (शुक्र) का सम्मान करते हैं ?

८ क्या आप अपने नीचे काम करने वालों (शनि) को उचित पैसा और सम्मान देते हैं ?

८ क्या आपका व्यवहार सफाई कर्मचारियों (राहु) के साथ ठीक है ?

९ क्या आप कुत्तों (केतु) की सेवा करते हैं ?

अगर इन प्रश्नों में ज्यादा के उत्तर नहीं हैं तो पूजा पाठ के फल प्राप्ति में मुश्किलें आएँगी। जरूरत है अपने जीवन जीने के ढंग को बदलने का। 



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विष्णु सहस्रनाम

विष्णु सहस्रनाम

शास्त्रों में विष्णु को पालन अर्थात जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले देव के रूप में परिभाषित किया गया है। अर्थात चाहे वह मनुष्य के विद्या ग्रहण की बात हो या फिर विवाह की। विवाह के पश्चात संतान प्राप्ति की बात हो या फिर संतान की उन्नति की, हर कार्य में भगवान विष्णु की कृपा के बगैर सफलता नहीं मिल सकती। भगवान विष्णु को बृहस्पति या गुरु भी कहा गया है। नक्षत्र विज्ञान में बृहस्पति को सबसे बड़ा ग्रह बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र में तो कन्या के विवाह का कारक ग्रह बृहस्पति को ही माना गया है।

महाकाव्य महाभारत के अनुशासन पर्व नामक अध्याय में भगवान विष्णु के एक हजार नामों का उल्लेख है। कहा जाता है कि जब भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे अपनी इच्छा मृत्यु के काल चयन की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब उन्होंने ये एक हजार नाम युधिष्ठिर को बताये थे। तथ्य यह है कि ज्ञान अर्जन की अभिलाषा में जब युधिष्ठिर ने भीष्मपितामह से यह पूछा कि 

"मेकम दैवतम लोके! किम वाप्येकम परयणम!" 

अर्थात कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है! तो पितामह ने अपने संवाद में भगवान विष्णु के इस एक हजार नामों का उल्लेख किया और कहा कि प्रत्येक युग में सभी अभीष्ठ की प्राप्ति के लिये, इन एक हजार नामों का श्रवण और पठन सबसे उत्तम होगा। विष्णु सहस्रनाम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हिन्दू धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है।

विष्णु सहस्रनाम में विष्णु को शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र के नाम से सम्बोधित किया है, जो इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि शिव और विष्णु एक ही है। आदि शंकराचार्य ने भी इस बात की पुष्टि की है। पाराशर भट्टर ने विष्णु को शिव के नाम से सम्बोधित किये जाने को विशेषण बताया है, अर्थात शिव रूपी शाश्वत सत्य को विष्णु के पर्यायवाची के रूप में व्यक्त किया गया है। विष्णु सहस्रनाम के आधार पर कैवल्य उपनिषद में विष्णु को ब्रह्मा और शिव का स्वरूप बताया गया है।


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क्या आपकी जन्म कुंडली में धन योग है


क्या आपकी जन्म कुंडली में धन योग है

आपकी जन्म कुंडली में धन योग है या नहीं यह जानने के लिए इस बात को समझना आवश्यक है कि धन योग बनता कैसे है। जन्म कुंडली का पहलाए दूसराए पांचवाए नवमा एवं ग्यारहवां भाव और उनके मालिक ग्रह धन योग का निर्माण करते हैं। 

यदि इन भावों के मालिक ग्रह अपने ही भाव में स्थित हों तो धन योग बनता है। यदि इन भावों के मालिक ग्रह एक दूसरे के भावों में स्थित हों तो धन योग बनता है एवं यदि इन भावों के दो या दो से अधिक  मालिक ग्रह किसी भी भाव में एक साथ स्थित हों तो धन योग बनता है।

एक व्यक्ति की जन्म कुंडली में एक से अधिक धन योग भी हो सकते हैं। अलग अलग धन योग की क्षमता भी अलग अलग होती है।

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महामृत्युंजय मंत्र के लाभ


महामृत्युंजय मंत्र के लाभ


शनि की साढ़ेसाती, अढय्या शनिए पनौती.पंचम शनिए राहु.केतु पीड़ाए भाई का वियोगए मृत्युतुल्य विविध कष्टए असाध्य रोगए त्रिदोषजन्य महारोगए अपमृत्युभय आदि अनिष्टकारी योगों में महामृत्युंजय प्रयोग रामबाण औषधि है।

मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा में सविधि मृत्युंजय जप,  रुद्राभिषेक एवं शिवार्जन से ग्रहजन्य एवं रोगजन्य अनिष्टकारी बाधाएँ शीघ्र नष्ट होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।


अभीष्ट सिद्धि, संतान प्राप्ति, राजपद प्राप्ति, चुनाव में विजयी होने, मान.सम्मान, धन लाभ, महामारी आदि विभिन्न उपद्रवों, असाध्य एवं त्रिदोषजन्य महारोगादि विभिन्न प्रयोजनों में सविधि प्रमाण सहित महामृत्युंजय जप से मनोकामना पूर्ण होती है।

विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है।देवता मंत्रों के अधीन होते हैं. 


" मंत्रधीनास्तु देवताः। "

मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है।

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सवार्थ कल्याणकारी है महादेव का रुद्राभिषेक


सवार्थ कल्याणकारी है महादेव का रुद्राभिषेक


भगवान शंकर कल्याणकारी हैं। उनकी पूजाए अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान सदाशिव का विभिन्न प्रकार से पूजन करने से विशिष्ठ लाभ की प्राप्ति होती हैं। यजुर्वेद में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यंत लाभप्रद माना गया हैं। लेकिन जो व्यक्ति इस पूर्ण विधि.विधान से पूजन को करने में असमर्थ हैं अथवा इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान सदाशिव के षडाक्षरी मंत्रं।  

"ॐ नमः शिवाय "

का जप करते हुए रुद्राभिषेक तथा शिव.पूजन कर सकते हैं, जो बिलकुल ही आसान है।



अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र.स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। शास्त्रों में भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है। 

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दुःखों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वतः हो जाती है।

रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है। वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है। पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है।

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जन्म कुंडली मिलान में जन्म लग्न कुंडली का महत्व

जन्म कुंडली मिलान में जन्म लग्न कुंडली का महत्व 


आमतौर से जन्म कुंडली मिलान का अर्थ गुण मिलान और मंगल दोष का सम्यक हो जाना समझा जाता है और इस प्रक्रिया में प्रस्तावित वर एवं वधू के व्यक्तिगत जन्म लग्न कुंडली को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। इसी कारण से जन्म कुंडली के मिलान के बाद भी विवाह के बाद आपसी मतभेद देखने को मिलता है और लोगों का भरोसा इस पूरी प्रक्रिया पर ही कम होता जा रहा है। जन्म कुंडली मिलान में सबसे महत्वपूर्ण बात व्यक्तिगत कुंडलीयों का सामंजस्य है जिसमें  चंद्रमा और शुक्र की स्थिति का मूल्यांकनए लग्नेश की मित्रता तथा सप्तम अष्टम एवं पंचम भाव का मूल्यांकन परम आवश्यक  है। 

गुण मिलान इस पूरी प्रक्रिया का बहुत ही छोटा हिस्सा है।              

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मंगल ग्रह का संक्षिप्त परिचय


मंगल ग्रह का संक्षिप्त परिचय 
                                         
सदा  उर्जावान सदा क्रोधी परस्त्री रत समस्त भोगों को भोगने वाला ग्रह है मंगल, ग्रहों की संसदं में इसको सेनापति का दर्जा प्राप्त है और सभी शौर्य और वीरता से सम्बंधित गतिविधियों में मंगल ही कहीं न कहीं से काम करता है !



मंगल का जन्म उज्जैयिनी में माना गया है तथा मंगल का मंत्र है -

" ॐ अं अंगारकाय नमः ! "

और इसको प्रतिदिन यदि संभव हो तो १००८ बार जपना चहिये अन्यथा १०८ बार तो अवश्य ही !

मंगल को २ राशियों का अधिपत्य प्राप्त है ! मेष और वृश्चिक, इसका रत्न मूंगा है और इसका रंग लाल है वैधव्य का हेतु भी मंगल ही है अगर ये जन्म कुंडली में १२,१,४,७, ८ भावों में हो और कहीं से इसका परिहार न हो रहा हो तो ये सबसे अमंगल ग्रह है ! मंगल प्रबल मारक होता है शस्त्र से मृत्यु देने में मंगल अग्रणी है, मंगल शौर्य भी है बेधड़क शत्रु के खेमे में जाकर सबको मटियामेट कर देने का साहस देने वाला ग्रह मंगल ही है सर पर चोट देने में भी मंगल को महारत हासिल है ! 

सड़क छाप गुंडे मवाली भी मंगल का ही रूप होते हैं और सड़क से सदन तक जाने वाले कई लोग मंगल प्रधान होते हैं मंगल से वाणी भी ख़राब होती है जिन स्त्रियों का मंगल द्वितीय भाव में हो और स्वराशी तथा शुभ द्रष्ट न हो उनको बहुत दिक्कत होती है, अगर मंगल कुंडली में अच्छा नहीं है तो आम तौर पे दिक्कत ही देता है और अगर अच्छा है तो व्यक्ति हर परिस्थिति से लड़कर आगे निकल जाता है !

मंगल अहंकार कूट कूट के भर देता है गीता में श्री कृष्ण ने स्पष्ट कहा है की अहंकार प्रभु प्राप्ति के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है मंगल प्रधान लोग बहुत भौतिकतावादी होते हैं,  मैंने कर रहा हूँ, मैंने करा,  मैं  ऐसा, मैं वैसा आत्म प्रशंसा सुन ने के भी ये लोग बहुत लालायित रहते हैं !

ख़राब मंगल को साधने के लिए हनुमानजी से अच्छा कोई नहीं है जिनका भी मंगल खराब हो मंगलवार को या जिस दिन चन्द्रमा मृगशिरा, चित्रा धनिष्ठा में हो तो १०८ या ५१ बार हनुमान चालीसा का पाठ करें और २७  बार उसी दिन या नक्षत्र में  पुनरावृत्ति करें !

वाहन से दुर्घटना, ओपरेशन, हाथ पैर टूटना, अंग-भंग होना सब मंगल की देन है अधिकतर सर पर चोट, टाँके लगना भी मंगल का ही काम है ! मंगल चिकित्सक भी बनाता है, सेना में भी भेजता है, पोलिस में भी, भूमि पुत्र है अतः भूमि से भी जुड़े हुई कामों में लगाता है जैसे बिल्डर, भूमि के दलाल, मंगल उद्योगपति भी बनाता है बड़ी बड़ी मशीनों का जहाँ पर काम होता है, वाहन के काम में भी लगा देता है !




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मिथुन राशि वालों के लिए मित्र और शत्रु ग्रह !

मेष राशि नमस्कार दोस्तों, आज से सभी 12 राशियों की जानकारी देने के लिए   एक श्रृंखला सुरू करने जा रही हैं जिसमे हर दिन एक एक राशि के बारे में...